Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 130
________________ सप्टेम्बर २००९ १२३ के स्मरण से सब सुख प्राप्त होते हैं, मोक्ष भी प्राप्त होता है और पुत्रकलत्र का परिवार भी बढ़ता है । इस प्रति की साइज २५.५ x ११ है । प्रति पत्र पंक्ति १३ हैं एवं प्रति पंक्ति अक्षर लगभग ३३ हैं । लेखन अनुमानतः १८वीं शताब्दी ही है। इस कृति का चतुर्थ पत्र ही प्राप्त है । सरसति शुभमति मुझ दिउजी आपु वचन विलास । गणि मेघा गुण गावतां जी मुझ मनि पुहचइ आस ॥ मोहन मुनिवरूजी मेघ महा मुनिराय । नामइ नवनिधि संपजइजी सुरपति प्रणमइ पास ॥१॥ मोहन० आंकड़ी ॥ अम्ह[दा]वादि चारित्र लीउजी विजयहंस गुरु पासि । विहार करइ वसुधा तलइजी नाणइ आवइ चउमास ॥२॥ मोहन० ॥ नाणइ अणसण ऊचरी जी कीधा आतम काज । मासि वैसाख सुदि तेरस्यइजी पाम्युं सुरपुरि राज ॥३॥ मोहन० ।। नाणइ श्रीसंघि पादुकाजी थापि वीर विहारि । प्रहि समि आवइ वंदिवाजी नित नित बहु नरनारी ॥४॥ मोहन० ॥ राणिगपुरि मेघपादुकाजी थापी जोधिगसाहि । रायणतलि रंगि करी श्रीसंघ पूजइ उछाह ॥५॥ मोहन० ॥ चातक चिति जलधर वसही जी किम कोइल सहकार । मधुकर मनि मालतइ वसइजी कुलवंति भरतार ॥६॥ मोहन० ॥ गयवर मनि रेवा वसइजी मोरां श्रावण मास । तिम मुझ मन तुझ नाम स्युंजी छइ ऋतु बारइ मास ||७|| मोहन० ।। नाम जपई महामुनि तणउजी नित नित जे नरनारी ।। मनवांछित सुख सहू लइजी पामइ शिवपुर सार, पुत्र कलत्र परिवार ॥८॥ ॥ मोहन० ॥ मेघ महामुनि नामनऊजी जाप जपुं निसदीस । मुझ मनि मेघ सदा वसइजी बोलइ विमलहंससीस ॥९॥ मोहन० ॥ इति श्री गणिश्री मेघा भास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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