Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 177
________________ १७० अनुसन्धान ४९ 'पडूचउं' विकसी शके नहि. एनुं मूळ कदाच 'प्रतीत्य' (प्रा. पडुच्च) होइ शके. आ सं.भू.कृ. नो प्रयोग ‘ने कारणे', 'ने माटे' एवा अर्थमां थतो हतो, क्रमशः 'अमुक वस्तुनी सामे' (जामीन माटेनी वस्तुनी सामे) एवो अर्थ विकस्यो होय अने भू.कृ.नो सन्दर्भ भूलाई, वस्तुवाचक नाम तरीके आ शब्द 'पडूचउं' बन्यो होय. - 'चहुण्टी'नो अर्थ चोटियो, चूंटली, चूंटी छे एम चोक्कस कही शकाय तेम छे, कारण के कच्छी भाषामां ‘चोंढडी' रूपे आ ज अर्थमां शब्द मळे छे. - 'वेगडि'नो अर्थ 'खुल्ला मोटा शींगड़ावाळी गाय' ए सूचिगत सं. पर्याय 'विकटशृङ्गी'ना आधारे करायो छे. श्रीकोठारीए "विकटशृङ्गी'ने मूळ तरीके मान्य नथी राख्यो, पण 'विकट' राख्यो ते तो योग्य ज छे, परंतु 'खुल्ला मोटां शींगड़ावाळी गाय' तेमणे स्वीकार्यो होय तो ते सुधारवा जेवो छे. आनो सन्दर्भ पण कच्छी भाषामांथी मळे छे. कच्छीमां 'वोड़ो/वोड़ी' शब्द प्रयोगमा छे, जेनो अर्थ 'किशोरवयनो वाछरडो' के 'किशोरवयनी गाय' थाय छे. आ अवस्थामां शींगड़ां फूटयां होय छे पण मोटां के पूरा विकसित नथी होतां. आथी 'जेनां शींगड़ां मात्र नीकळ्यां छे एवी गाय' - एवो अर्थ स्पष्ट थाय छे. _- 'आडण' नो अर्थ अर्थ 'अंगशोभा' नहि पण 'अंगशोभा माटेर्नु वस्त्र' थतो होवो जोईए. आनो आधार पण कच्छी 'आडियो' शब्द पूरो पाडे छे. पुरुषो चोरणा ऊपर एक कपडं आईं बांधता, जेनो उद्देश सभ्यता (मर्यादा)नो हतो अने 'शोभा'नो अर्थ पण एमां समायेलो छे ज. - 'पाथरपुं'नो पर्याय 'प्रसूरण' अपायो छे, परंतु अहीं वाचनभूल थई जणाय छे. 'प्रस्तरण' होवू घटे. ___- 'अंबोडउनी व्युत्पत्ति 'आनेडक' के 'आमेडित'मांथी होई शके. _ 'पंद्रह कर्मादान' विषयक अभ्यास लेखमा लेखिकाए चर्चाना उपसंहारमा '.... इन में से ज्यादातर... निषिद्ध नहीं थे, नहीं हैं और भविष्यकाल में तो बिलकुल निषिद्ध नहीं होंगे' एवा शब्दोमां निष्कर्ष आप्यो छे ते नवाई पमाडे छे. लेखिका जैन परम्परानी 'अतिचार'नी विभावना अने सूत्रपाठनी शैली यथार्थ रूपे समजी नथी शक्या. वधुमां आ प्रकारना व्यवसायो सामाजिक-पर्यावरणीय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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