Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
View full book text
________________
सप्टेम्बर २००९
१७५
३३
१६८
२०९
आपी छे. कृतिना पाठमां क्वचित् शुद्धिस्थान छ : श्लो. अशुद्ध
शुद्ध विणम्मवियं विणिम्मवियं नियमा
नियया भदियाए
मट्टियाए २५० जहामुहं
जहासुहं गा० ८०नी चूर्णिमा मुद्-मोषा० छे ते वाचनभूल लागे छे. प्रसंगप्राप्त मुद्ग-माषा० संगत बने.
'चतुर्विंशतिस्तोत्रद्वय' द्वारा बे नवां स्तोत्रो उमेराय छे. विद्वानो पोताना सर्जनकाळना प्रारम्भे अथवा पछी पण शिष्यादिनी विनंतिथी आवी नियत ढांचानी रचना करवा प्रेराता होय छे अने तेथी आवी रचनाओ कंइक क्लिष्ट बनी रहे छे. प्रथम स्तोत्रना श्लो० १४ मां 'श्रमणगुणीनाम्' वंचायुं छे पण त्यां ‘णा' नो ‘णी' वंचायो जणाय छे. 'श्रमणगणानां' पाठ सुसंगत छे. यमकबन्ध आ कृतिमां शिथिल छे ज, तेथी 'रमणीनां'नी सामे गणानां कविने स्वीकार्य हशे- एम समजी शकाय छे.
द्वितीय स्तोत्रना अन्तिम श्लोकमां 'ध्रीद्वैत' छे त्यां 'धिद्वैत' समजवू जोईए. 'द्वय'ने बदले कविए 'द्वैत' शब्द छन्दनी आवश्यकताना कारणे लीधो छे.
ज्ञानतिलकप्रणीत स्तोत्रत्रय कविना कवित्व अने शब्दसमृद्धिना परिचायक छे. ते ते काळे प्रवर्तमान साहित्यप्रवाहोने कविओए केवी रीते आत्मसात् कर्या छे तेनी आवा स्तोत्रो द्वारा झांखी थाय छे.
'सुमति-कुमति-वाद' गीतनी त्रीजी कडी अपूर्ण अथवा भ्रष्ट रहे छे. आना कर्ता 'लाल विनोदी' ए 'लालविजय' नहीं पण 'विनोदीलाल' नामे गृहस्थ कवि होवानो संभव वधारे छे.
'पुष्पमालाचिंतवणी' ए गणितचमत्कारनी रचना छे. गमे ते ३१ वस्तुओ पर आवी रमत योजी शकाय. आ रमत आजे पण जुदा जुदा विषयो पर प्रचलित छे. ३१ नामोनुं एक पत्रक होय अने एमांनां ३१ नामो अलग अलग पत्रकोमां
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 180 181 182 183 184 185 186