Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 180
________________ सप्टेम्बर २००९ ढा. ६ ढा. ८ ढा. ४ ढा. ९ चुंप = चोंप, काळजी (क. ५) जोखौ जोखम, भय (क. ५ ) चीता = चित्तमां (क. ११) उसरावण ऋणरहित (क. १६) परही दूर, अळगो (क. ८) वासणी (ली) = वांसळी, नळी (क. १७) = = Jain Education International कमर पर बांधी लेवाता) (दू. ५) - रंधाणी = रसोडुं (क. ६) कछूलो = ? (क. १३) = ढा. १० सकज ढा. १२ रुचिसार = रुचि प्रमाणे (क. ७) ढा. २, क. ७ 'पहड' छे त्यां 'पडह' होवानी शक्यता छे. ढा. ४, क. ७ 'बैंगै' छपायुं छे ते वाचनभूल अथवा दृष्टिदोष छे. अहीं 'बैगे' शब्द सुसंगत छे. शब्दकोशमां अने मूळमां 'तड्यो' छपायुं छे त्यां पण दृष्टिदोषथी खोटुं वंचायुं छे. 'तज्यो' ज होवानी पूरी शक्यता छे. एवी रीते 'हुक्कम 'छे ते पण लहियानी भूलथी थयुं हशे; आवी भूलोने पाठान्तर के अलग शब्द गणवानी जरूर रहेती नथी. ए शब्दोने सुधारा साथे लखवा जोइए. शब्दकोशमां ' भांड्या 'नो अर्थ 'फेंक्या' कर्यो छे पण ए 'भांडी' (वासण) नुं ब. व. छे. ए ज कडीमां 'भडकाई' छे, एनो अर्थ 'भटकावी, अथडावी' समजी शकाय छे. कार्यकुशल, समर्थ (क. ७) १७३ 'वाहर' = 'सेना' नहीं पण मदद, वार. बाहर चढियो' वारे = चड्यो. 'कूकवाजी' अने 'तिकोजी' - बनेमां 'जी' शब्दनो भाग नथी, देशीमां वपरातो 'जी' छे. 'वीसवावीस' ए 'सोळ आना', 'सो टका' जेवा अर्थनुं जूनुं क्रि. वि. अव्यय छे. ढा. ११, क. १३ 'जिन ध्रमशील अमोलें' एम छपायुं छे त्यां जिनध्रम शील अमोलें' एम वांचवुं जोइए. शुभ जिनधर्म अने अमोल शीलथी सुन्दर कीर्ति थाय छे एम सहु बोले छे- एवो आ पंक्तिनो अर्थ थाय छे. आमां कर्ताए पोतानुं नाम 'कीर्तिसुन्दर' श्लेष द्वारा जणाव्युं छे. 'महावीरपारणास्तवन'ना कर्ता विशे गूंचवाडो छे कारण के मुनि माल For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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