Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 164
________________ सप्टेम्बर २००९ १५७ तो सम्भावना यह भी है कि इतने सारे नारदविषयक उल्लेख जैन रामायण में पाने पर वाल्मीकि रामायण में प्रक्षेपस्वरूप नारद की व्यक्तिरेखा जोडी गयी होगी । विमलसूरि के सामने नारदसम्बन्धी पूर्ववर्ती जैन धारणायें जरूर रही होंगी । तथापि पारम्परिक रूप से किसी भी तरह नारद का अंतर्भाव न करके, पहली बार नारद का सम्बन्ध विमलसूरि ने रामकथा से जोडा । कृष्णकथा से जुडा हुआ राम, इतनी बार और इतने प्रसङ्गों में और इतने अलगअलग तरीके से 'पउमचरियं' में आया है कि, हम कह सकते हैं कि विमलसूरि ने हिन्दु और जैन दोनों परम्पराओं से जुड़े हुए नारद की व्यक्तिरेखा का, रामकथा में एक 'मिथक' की तरह उपयोग किया है। नारद के मुख से यज्ञहिंसा का विरोध, नारद का जटाधारी ब्राह्मण होना५३, यज्ञविरोध के लिए दूसरे ब्राह्मण द्वारा पीटे जाना५४, 'अज' शब्द का सही अर्थ बताना५५, नारद का प्रसङ्गोपात्त भयभीत होना और दूसरों द्वारा पकडे जाना, भामण्डल के मन में सीता के प्रति आकर्षण उत्पन्न करना६, रामरावण युद्ध की खबर कौशल्या को देना५७, निर्दोष सीता के त्याग के लिए राम को दोषी मानना, सीता के दुःख से भावविभोर होना८, 'लव' और 'कुश' को पत्नीपर अन्याय करनेवाले राम की कथा सुनाना, दोनों को राम को पराजित कर राज्य लेने की सलाह देना , लव और कुश के जन्म की खबर लक्ष्मण को देना इ. अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य विमलसूरि ने नारद के द्वारा करवाये हैं। रामकथा में नारद को लाने के कई कारण विमलसूरि के मन में हो सकते हैं। उन्हें वाल्मीकि रामायण की असम्भवनीय और अतार्किक बातें सम्भावना की कोटि में लानी है । कथा के त्रुटित धागे जोड़कर कथा का धाराप्रवाह बनाये रखना है। आदर्शवत् राम ने चारित्र्यसम्पन्न सीता पर उठाये गए कलङ्क को स्पष्ट शब्दों में अंकित करने का उनका इरादा है । रामरावण युद्ध की अयोध्यावासियों को खबर न होना उन्हें ठीक नहीं लगा होगा । ये सब काम करवाने के लिए उन्हें नारद के व्यक्तित्व के अनेक चित्ताकर्षक अंश उपयुक्त लगे और उन्होंने उनका मनःपूत प्रयोग किया । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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