Book Title: Anusandhan 2009 09 SrNo 49
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 163
________________ १५६ अनुसन्धान ४९ महाधिकार में लिखा है कि, "भीम, महाभीम, रुद्र, महारुद्र, काल, महाकाल, दुर्मुख, नरकमुख और अधोमुख ये नौ नारद हुएं । ये सब नारद अतिरुद्र होते हुए दूसरों को रुलाया करते हैं और पाप के निधान होते हैं । सब ही नारद कलह एवं महायुद्धप्रिय होने से वासुदेवों के समान अधोगामी अर्थात् नरक को प्राप्त हुए। इन नारदों की ऊंचाई, आयु और तीर्थंकरदेवों के प्रत्यक्षभावादिक के विषय में हमारे लिए उपदेश नष्ट हो चुका है। तीर्थंकर, चक्रवर्ती, बलदेव, नारायण, रुद्र, नारद, कामदेव ये सब भव्य होते हुए नियम से सिद्ध होते हैं । "५१ • शोधनिबन्ध में अब तक उल्लिखित ग्रन्थ में नारद के बारे में जितनी जानकारी मिलती है उससे सर्वथा अलग और चौंका देनेवाली यह जानकारी है । नारद के व्यक्तिमत्त्व के सब निन्दनीय अंश इकट्ठा करके, वासुदेव आदि की तरह एक पदविशेष की निर्मिति करते हुए, वासुदेव के सम्पर्क में हमेशा रहने के कारण, उनको भी प्रथमत: नरकगामी बनाया है। नारद के नरकगामी होने का उल्लेख भी सिर्फ त्रिलोकप्रज्ञप्ति की विशेषता है । कलहप्रिय एवं निन्दनीय नारद को 'काव्यगत न्याय' (Poetic Justice) के अनुसार लेखक ने नरकगामी बनाया होगा । तथापि ऋषिभाषित का आदरणीय स्थान ध्यान में रखते हुए, आगामी जन्म में नारद की सिद्धगति बताकर, लेखक ने अपनी दृष्टि से यह गुत्थी सुलझाने का प्रयास किया है। विमलसूरिकृत पउमचरियं में नारद ‘एक मिथक' : उपलब्ध रामायण में बालकाण्ड तथा उत्तरकाण्ड में नारद की व्यक्तिरेखा अंकित की है । बीच में कहीं भी नारद का वृत्तान्त नहीं है । रामायण के चिकित्सक अभ्यासक बालकाण्ड और उत्तरकाण्ड को प्रक्षिप्त मानते हैं । अगर विमलसूरि के सामने दोनों काण्ड होंगे तो उन्होंने अपनी प्रतिभा और सर्जनशीलता के अनुरूप नारद को रामकथा के बीच गूंथा होगा। अगर विमलसूरि के सामने (इसवी की चौथी शती) दोनों काण्ड नहीं होंगे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170 171 172 173 174 175 176 177 178 179 180 181 182 183 184 185 186