Book Title: Ang Sahitya Manan aur Mimansa Author(s): Sagarmal Jain, Suresh Sisodiya Publisher: Agam Ahimsa Samta Evam Prakrit Samsthan View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब होता है। इस दृष्टि से अर्धमागधी आगम साहित्य जैन समाज और साहित्य का प्रतिबिम्ब माना जा सकता है। अर्धमागधी आगम साहित्य को अंग, उपांग, छेद, मूल, चूलिका और प्रकीर्णकों में विभाजित किया जाता है। आगम साहित्य में अंग आगमों की उपादेयता सर्वोपरि है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए श्री साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, निम्बाहेड़ा द्वारा समता विभूति स्व. आचार्य श्री नानालाल जी म.सा. के सुशिष्य तत्कालीन युवाचार्य प्रवर श्री रामलाल जी म. सा. के सानिध्य में 25 नवम्बर 1996 को समता शिक्षा सेवा संस्थान, देशनोक एवं आगम, अहिंसा-समता एवं प्राकृत संस्थान, उदयपुर के अकादमी सहयोग से "अंग साहित्य : मनन और मीमांसा" विषयक द्वि-दिवसीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। संगोष्ठी में जैन विद्या के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वानों ने प्रत्येक अंग आगम का विशद् अध्ययन कर अपना शोध-पत्र प्रस्तुत किया था। संगोष्ठी के अन्तिम सत्र में यह विचार उभर कर सामने आया कि अंग आगम साहित्य की विषय-वस्तु से जन सामान्य परिचित हो सके, इस हेतु संगोष्ठी में पठित आलेखों को प्रकाशित किया जाना चाहिए। तदनुरूप "अंग साहित्य : मनन और मीमांसा' के नाम से इन आलेखों का यह संकलन प्रस्तुत कर रहे हैं। संगोष्ठी आयोजन हेतु हम श्री साधुमार्गी जैन श्रावक संघ, निम्बाहेड़ा के आभारी हैं तथा इन आलेखों को प्रकाशित करने हेतु हम सुश्रावक श्री रतनलाल जी हीरावत, दिल्ली के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करते हैं जिन्होंने अपने पूज्य पिताश्री तोलाराम जी हीरावत की पुण्य स्मृति में इन आलेखों को प्रकाशित करने का अर्थ व्यय वहन किया। हम संस्थान के मानद निदेशक प्रो. सागरमल जैन एवं शोध अधिकारी डॉ. सुरेश सिसोदिया के प्रति भी आभार व्यक्त करना अपना दायित्व समझते हैं जिन्होंने प्रस्तुत आलेखों का सम्पादन कर इन्हें पुस्तक रूप में प्रस्तुत करने का श्रम किया। - हम संस्थान के मार्गदर्शक प्रो. कमलचन्द सोगानी, सह निदेशिका डॉ. सुषमा सिंघवी, उपाध्यक्ष श्री वीरेन्द्र सिंह लोढ़ा एवं मन्त्री श्री इन्दरचन्द बैद के भी आभारी हैं, जो संस्थान के विकास में हर संभव सहयोग एवं मार्गदर्शन दे रहे हैं। संस्थान द्वारा अब तक 12 प्रकीर्णक अनुवाद सहित प्रकाशित हो चुके हैं। प्रकीर्णक ग्रन्थों के अनुवाद के साथ ही संस्थान द्वारा 2 शोध प्रबन्ध भी प्रकाशित किये गये हैं। संस्थान द्वारा समय-समय पर संगोष्ठियों का आयोजन कर उसमें पठित आलेखों का प्रकाशन किया गया है। पूर्व में प्रकीर्णक साहित्य विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था। उसमें पठित आलेखों को प्रकीर्णक साहित्य : मनन और मीमांसा नामक पुस्तक रूप में प्रस्तुत किया गया था। इसी क्रम में अंग साहित्यः मनन और मीमांसा नामक प्रस्तुत पुस्तक का प्रकाशन किया जा रहा है। ग्रन्थ के सुन्दर एवं सत्वर मुद्रण के लिए हम चौधरी ऑफसेट प्रा. लि., उदयपुर के भी आभारी हैं। सोहनलाल सिपाणी सरदारमल कांकरिया अध्यक्ष महामंत्री Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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