Book Title: Anekant 1945 Book 07 Ank 01 to 12
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 11
________________ तुम महान मानव थे भगवन् ! युगों युगों तक विश्व न तुमको भूल सकेगा, त्रिशला-नन्दन ! तुमने तब अवतार लिया जब करमें धवल अहिंसा-ध्वज ले, पशु-हत्या ही धर्म हुआ था ! बीतगगताका सम्बल ले. अपनी सर्वश्रेष्ठता - मदमें विद्रोही । सत्याग्रह धर तुम जब मानव बेशर्म हुआ था !! जब ममता-सीमास निकलेतुमने स्वगृह, वजन, बवैभव, लेखक तबर्गव,शशिभी भिमक उठे थे, सब कुछ तब त्यागा जब यौवन श्री 'तन्मय' लघु नक्षत्रोंकी बिसात क्या ? अपने पूरे यौवनपर था, बुम्बारिया तब सुरगण भी सिहर उठे थे, और नियंत्रण-रहित देह-मन । कवि मानवकी कहे वान क्या ? जब कि देखता था संमृतिक खेल उठा था भू-प्राङ्गण में अणु अणुमें नूतन आकर्षण । एक निराला ही परिवर्तन ! तुम महान मानव थे भगवन ! तुम महान मानव थे भगवन : युगों युगों तक विश्व न तुमको युगों युगों तक विश्व न तुमको भूल सकेगा, त्रिशलानन्दन ! भूल मकेगा, त्रिशला-नन्दन ! वर्षों तक अपना मन मथकर, जब तुमने सतज्ञान पा लिया । और अनवरत तप-चिन्तनसे, मानव-धर्म महान पा लिया, वब तुमने उपदेश दिया यह--"मानव-पशु दोनों समान हैं, दोनों में अनुभूति एक है, दोनोंमें ही एक प्रारण हैं ! नर यदि चाहे, तो वह कर्मो से नारायण बन सकता है ! राग-द्वेष इत्यादि शत्रुओं को कर्मोस हन सकता है !! 'स्वयं जियो, पर औरोंको भी जीने दो'-बस धर्म यही है ! 'सदा अहिंसापर दृढ़ रहना' मूल धर्मका मर्म यही है !!" तुमने भू-संचालनसे ही बदल दिए दुनियाके दर्शन ! तुम महान मानव थे भगवन् ! युगों युगो तक विश्व न तुमको भूल सकेगा, त्रिशला-नन्दन !!

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