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अनेकान्त
[ वर्ष
देखते हुए यह पाशा नहीं थी कि राजगृहके लिये संकल्पित कारण यह और भी अधिक विशेषताको लिये हुए था और मह महोत्सव कलकत्ते में इतने अधिक समारोहके साथ अपने रंगढंगसे जैनियोंकी सामाजिक प्रभावनाको दसरोंगर मनाया जा सकेगा। परन्तु यह इस महोत्सव की ही विशे- अंकित कर रहा था। दिगम्बरोंका जलम चावपट्टीके पता है जो कलकत्ते वालोंके मुंहमे भी यह कहते हुए पचायसी मन्दिरमे चलकर बेलगडियाके उपवनी मन्दिर में समा गया कि इतना बा महोत्सव कलकत्ते इससे पहले समाप्त हुया था, जो बड़ा ही रमणीक स्थान है और वहीं कभी नहीं हुआ। अनेक प्रतिबन्धोंके होते हुए भी दूर दूर पर महोत्सवमा मध्य पण्डाल (सभा मण्डप) बना था,
सभी प्रान्तोकी जनता मण्डी संख्यामें उपस्थित हुई थी, जिसमें ऊँचे विशाल प्लेटफार्म ( स्टेज ) के अलावा बैठने के प्रतिक्षित सजनों और विद्वजनों का अच्छा योग भिड़ा था, लिये कुपियां भी, बिजलीकी लाइट थी और लाउरस्पीकरों सभी वर्गोंके चुने हुए विद्वानों का इतना बड़ा समूह तो का भी प्रबन्ध था। शायर ही समाजके किसी प्लेटफार्म पर इससे पहले कभी जलपकी समाप्ति पर भोजन निमरते ही उपस्थित. देखने को मिला हो।
जन पिण्डाल में पहुंचने शुरू हो गये और बातकी यातमें ___ ता. ३१ को रथयात्राका शानदार जलूम दर्शनीय सभामण्डप जनतास खचाखच भर गया। उस दिन यह या दिगम्बर और श्वेताम्बर दो सम्प्रदायोंका जलूस मिल ___ ममम कर कि जलूमके कारण जनता थकी हुई होगी, रात्रि कर ॥ मील के करीब बम्बा था। जलपमें रथों, पालकियों के पपय कोई विशेष तथा भाग प्रोग्राम नहीं रखा गया चदी पोने के सामानों, घजानों, बेंबाजों और दूसरी था। परन्तु उन्मुक जनसमूहको देख कर यह महसूस हुआ शोभाकी चीजोंकी इतनी अधिक भरमार थी कि दर्शकोकी कि उप रात्रिको विद्वानोंके भ षणादि रूपमें यदि कोई रष्टि भी बगातार देम्बते २ थक जाती थीं, प.न्तु देखने की अच्छा प्रोग्राम रक्खा जाना नो वह खूब सफल होता। उत्सुकता बन्न नहीं होती थी--चीजोंमें अपने अपने नये प्रस्तु, दो विद्वानोंके भाषण हुए और फिर क.िसम्मेलनका रूप, रंगढग और कला कौशम भादिका जो भाकषण था वह साधारणमा जल्पा करके तथा अगले दिनका प्रोग्राम सुना जनताको अपनी ओर भाकर्षिन और देखने मे उत्सुक किये कर कार्रवाई समाप्त की गई। तदनन्तर मन्दिरमें श्रीजनेहए था। लाखों की जनता उत्सवको टकटकी लगाये देख न्द्रमूर्तिके सम्मुख कीर्तन प्रारम्भ हुआ, जिसमें सेठ गजरही थी, कलकत्तेके लम्बे चौडे बाजार दर्शकोंये भरे हुए राजजीके नृत्यपर सबकी खे लगी हुई थी और श्री वीर ये और दोनों ओरके कई मंजिले मकानोंकी सभी मंजिलें जिनेन्द्र तथा वीरशासनकी जय जयकार हो रही थी। दर्शकोंमे पटी पदी थी--भीसके कारण नये भागन्तुचोंकोली नवम्बरको सुबह से ११॥ तक जैन भवन में प्रवेशमें बड़ी दिक्कत होती थी। बाजारों में ट्रेम्वे तथा मोटर स्वापनसमिति और श्रागत प्रतिनिधियोंका एक सम्मेलन बसोंपादिका समना प्रात:कालयेही बन्द था-उनकी बन्दी सेठ गजराजजीके सभापतित्वमें हुआ जिसमें वीरशासन
लिये पहले दिन ही पत्रों में सरकारी प्रार्डर निकल गये महोत्सवकी सफता और कलकत्तामें उसकी एक यादमार थे। जलूमका झंडा बहुत ऊँचा होने के कारण जगह जगह कायम करनेक भादिके विषय में विचार-विमर्श किया गया पर बिजली के तार काट दिये जाते थे और फिर बादको और इस सम्बन्धमें अनेक विद्वानोंके भाषण हुए. जिनमें जोरे जाते थे। यह खास विचायत जैनपमाजकोही वहीं उन्होंने अपने अपने टिकायाको स्पष्ट किया। तासरे पहर अपने वार्षिको सबके लिये प्राप्त है, जो कार्तिकी पूर्णिमामे बेलगछियामें मजैन विद्वानोंके लिये एक टी-पार्टी की मंगसिर बदि पंचमी तक होता है. श्रीजिससे यह स्पष्ट योजना की गई, जिसमें लगभग १०. प्रतिष्ठित विद्वानों है कि वहाँका जैनसमाज बहुत पहले से ही विशेष प्रभाव. तया स्कालरों प्रादिने भाग लिया और जो बड़ी ही शानके शासी तथा राजमान्य रहा है। कलकत्ते की रथयात्राका यह साथ सम्पन हुई। जैनियों के लिये संध्या-मोजनका प्रबन्ध जलूम भार वर्षके सभी जैन रथोत्सबके जलूमोसे बना तथा भी बेजगहियामें ही था। टी-पार्टी और भोजनके मनन्तर महत्वका समझा जाता है। इसबार पीरशासन-महोत्सबके संध्या समय मंडाभिवादनकी रस्म सर सेठ हुकमचन्नजी