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जैन अनुश्रुतिका ऐतिहासिक महत्व (ले०–बा० ज्योतिप्रमाद जैन, 'विशाग्द' एम० ए०, एल-एल० वी० )
जिस प्रकार इतिहास जातीय साहित्यका एक महत्वपूर्ण जातीय जीवनका अङ्ग बने हुए हैं और जिनका एकमात्र अङ्ग होता है, उसी प्रकार ऐतिहासिक साधनोंमे जातीय आधार जातीय अनुश्रति ही है-उक्त कालस पूर्व होचक अनुश्रतिका भी प्रमुख स्थान है। वास्तवमै अनुश्रति इति- हैं। अन्य वैज्ञानिक साधनोंसे उनकी पुष्टि न होनेके कारण हासकी जननी है। यद्यपि इतिहासकार इतिहास सृजनका प्राजक इनिहापविशंपज्ञ उन्हे प्रामाणिक इतिहासकी कोटि प्रधान निमित्त है तथापि उसकी सफलता अधिकांशमे में नहीं रखता, किन्तु एकाएक उन्हें नितान्त कपोलकल्पित तत्सबधित उपादानोपर ही अवलवित होती है। इतिहास कहने में भी हिचकिचाता है। निर्माण के उपादान वे सर्व साधन और सामग्रियां हैं,
__ भारतीय इतिहासका प्राचीन युग महाभारत युद्ध के जिनके कुशल एवं यथार्थ उपयोगसे योग्य इतिहासकार
बादसे मुसलमानों के भारत प्रवेश (८वी शता. सन् ई०) तक अतीतका यथावत चित्र वर्तमानमें हमारी मनःचक्षुग्रोके
लगभग २२०० वर्षका लम्बा काल है। इसके बहुभागका सम्मुख ला उपस्थित करता है।
ढांचा अनुश्रुतिके ही प्राधारपर बना है, और ज्यों ज्यों जातीय अनुश्रुति उसका प्रधान उपादान होती है।
उसकी पुष्टि अलिखित-लिखित पुरातत्व, राजमुद्रामो समअनुश्रुतिका अर्थ है- 'इत्येवमनुश्रुतम्' अर्थात ऐसा अगली
मामयिक साहित्य यात्राविवरणों, राजकीय उल्लेखों एवं से सुना है, पूर्वजोंसे परम्परागत ऐसा सुनते चले आये हैं। वर्णनो, वैयक्तिक कथनों, समसामयिक तथा उत्तरकालीन मि. पाणीटरने अपने Ancient Indian Histor
इतिहासग्रन्थों हत्यादि प्रमाणोक तिहासिक उपादानोंद्वारा cal Tradition' (प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक अनु. होती गई. तत्सम्बन्धी व्यकियां तथा घटनाएँ प्रमाणकोटि श्रुति पृ० १८) नामक ग्रन्थमे 'ट्रेडीशन' शब्दसे तथा पं०
में प्रातो गई। मध्य तथा अर्वाचीन युगके इतहासके जय चन्द्र विद्यालकारने "भारतीय इतिहासकी रूपरेखा" लिये अनश्रति अवश्य ही गौणतम साधन रह जाती है नामक ग्रन्थमे 'अनुश्रति' शब्दसे यही भाव लिया है। किंतु तथापि सर्वथा अनुपयोगी नहीं। विशेषरूपम इसका अर्थ पुराणादिक धार्मिक कथा-प्रम्धों. आख्यानों तथा धार्मिक माहित्यमे उपलब्ध अन्य ऐति
प्रारम्भमे अनुश्रुति मौखिक ही हुआ करती है किन्तु हासिक निर्देशो तक ही सीमित किया गया है । अस्तु,
कालान्तरमें प्राय: लिपिबद्ध हो जाती है। एक समय ऐसा प्रस्तुत लेखमें जैनअनुश्रुति' में हमारा अभिप्राय भी जैन
भी था जब कि जिपिका आविष्कार नहीं हुआ था किन्तु धार्मिक ग्रन्धों में उपलब्ध कथानकों, श्राख्यायिकानों, वंशा. समाज, धर्म और सभ्यताके उदयके साथ साथ परस्पर वलिनी, पट्टावलियों, गुर्वावलिओं, चारित्रो, घटनाओं
भाव-व्यञ्जनाके लिये उपयुक्त भाषाका आविष्कार अवश्य इत्यादिसे है।
ही हो चुका था। प्राचीन भारतीय अनुश्रतिक श्राधारपर
धर्म और समाजके आदि प्रवर्तक, वैदिक साहित्यके महा भाधुनिक इतिहासकार भारतवर्षके नियमित इतिहास
__ वात्य, हिन्दुपुराण-ग्रन्थोंके छठे अवतार, नाभिपुत्र ऋषभ का प्रारंभ महाभारत युद्धके उपरान्त अर्थात् लगभग
तथा जैनोंके प्रथम तीर्थकर भगवान आदिनाथ थे। उन्हीं १५०. सन ईस्वी पूर्वसे मानने लगे है । किन्तु भारत देश, प्राटिदेव अषभके ज्येष्ठ पत्र भरत चक्रवर्ती भारतके प्रथम भारतीय समाज और भारतीय संस्कृतिसे घनिष्ट तया ... सम्बद्ध अनेक महापुरुष तथा महत्वपूर्ण घटनाएँ, जो १ 'धर्मका श्रादि प्रवर्तक'-स्वामी कर्मानन्द