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अनेकान्त
[वर्ष ७
आई, और देखने लगी रष्टिके पथपर जो कुछ सामने आया। हृदयकी शुद्ध धावाज भगवान तक पहुंच चुकी थी। बाबा अपनी चाकरी वजा रहे थे।
वह मुग्ध हो इधर उधर देखने लगी। चारों और परिवर्तन सामने राज-मार्गपर?
था। हथकड़ियां, बेडियां टूट रही थी। मिट्टी सारे बर्तन, चन्दनाने देखा और एक वारगी प्रफुजित हो गई। स्वर्श-पात्र हो चुके थे । कोदोंकी जगह शुद्ध, प्रासुक खीर उसका रोम-रोम प्रसनतासे उठ खडा हुना, भूल गई कि दिखलाई दे रही थी। वह बन्दिनी है हथकड़ी-बेडिया उसे बांधे हुए हैं ..... वह प्रानन्दविभोर हो उठी । भरा हुआ जल-पान कितना पावन-दृश्य था ? ...
लेकर वह द्वारपर आई । भावाज दी-'बाबा...!' भगवान महावीर चर्याको निकले हुए थे ! दिगम्बर- बाबा पहले ही प्रसन्नताम दूब रहे थे। गद्गद्-स्वरमें रूप, उद्दीप्त, सौम्य-शान्त शरीर, नासाग्र-दृष्टि ईर्या-पथ- बोले-'भाग्यशाली हो बेटी!-और पास श्रा खड़े हुए। मण्डित बढ़े चले पारहे थे-धीरे-धीरे !
भगवान द्वार तक पा पहुंचे थे। चन्दना, वन्दिनी चन्दनाके सारे तार मनमना उठे। श्रद्धामे मस्तक झुक गया, भक्ति आंखोंके रास्ते बहने लगी वह कितनी प्रसन्न थी ?"
'राजकुमारी चन्दनाकी जय हो ! एक ही सणके भीतर वह विचारोंमे तैरने लगी- जय-धोषसे आकाश गुज उठा, फूल बरसने लगे। काश आज मैं उस स्थितिमें होती कि भगवानको श्राहार पंचाश्चर्य हो रहे थे। देस जन्म-मफल कर सकती !..' ।
___ भगवान महावीरका निविन पाहार हुश्रा था। वणिक अनुतापग्मे मुंह मलिन होने लगा।
पत्नी कह रही थी-'धन्य हो देवी । तुमने मुझे भी भगवान महावीर चले भा रहे थे।
स्मरणीय बना दिया । लोग जहां चन्दना-उद्धार की क्या चन्दना एकटक देख रही थी-विश्व वंदनीय, कहेगे वहां वे मुझे भी याद करेंगे। मैं बाज लज्जासं गढी दयावतार भगवान महावीरकी शान्तिमुद्रा । पराधीना जा रही हैं. मुझे क्षमा करीबहिन ।' चन्दनाकी यांचे बरस रही थी। "मन दुख रहा था !
x भगवान और समीप पाए !
[10] चन्दनाकं भीतरसे ध्वनि आई-'काश ' तू पाहार दूसरे दिन : दे सकती!' उसने विवश-दृष्टिसे अपने करपात्रकी पोर बाबाको उस चाकरीम छुट्टी मिली हुई थी । घरक दखा। और वह चौक परी--'यह क्या ? • 'चमत्कार'?' दुसरे काम-धन्धे उनके सुपुर्द थे।
त्रैलोक्यप्रकाशका रचना-समय और रचयिता
(लेखक--श्री अगरचन्द नाहटा)
जैन मत्यप्रकाशके व अ६ मे श्रीयुत मूलराजजी लेख प्रकाशित हुभा है। उसमें आपने ग्रन्थका रचनाकान जैनका श्री हेमप्रभमूरि-विचित त्रैलोक्यप्रकाश' शीर्षक "यह प्रथ सं० १९७० से बहुत पहलेका म होगा" शब्दों * अनेकान्त वर्ष ५ अङ्क १२ में भी इमकी वचनिका शाह द्वारा उसके पास पामका अनुमान किया है। पर वे ठीक जवाहरलालजीके बनाने आदिका उल्लेग्न हे ।
समय निीत न कर सके और न ग्रंथकर्ताक गच्छका