Book Title: Anekant 1940 02
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 3
________________ Bee प्रवा M anmumm. MPARA AMANASMINATIrail नीति-विरोध-ध्वंसी लोक व्यवहार-वर्तकः सम्यक् । परमागमस्य बीजं भुवनैकगुरुर्जयत्यनेकान्तः ॥ सम्पादन-स्थान–वीरसेवामन्दिर (समन्तभद्राश्रम), सरसावा, जि. सहारनपुर प्रकाशन-स्थान-कनॉट सर्कस, पो० बो० नं० ४८, न्यू देहली किरण ४ ___माघ-पूर्णिमा, वीरनिर्वाण सं० २४६६, विक्रम सं०१६६६ । । विद्यानन्द-स्मरणा अलंचकार यस्सार्वमाप्तमीमांसितं मतम् । स्वामिविद्यादिनन्दाय नमस्तस्मै महात्मने ॥ यः प्रमाणाप्तपत्राणां परीक्षाः कृतवान्नमः ।, विद्यानन्दमिनं तं च विद्यानन्दमहोदयम ॥ वद्या नन्दस्वामी विरचितवान् श्लोकवार्तिकालंकारम् । जातिकालंकारस। . जयति कवि-विबुध-तार्किकचूडामणिरमलगुणनिलयः ।।-शिमोगा-नगरतालुकशिलालेख नं०४६ जिन्होंने सर्वहितकारी प्राप्तमीमांसित-मतको अलंकृत किया है-स्वामी समन्तभद्रके परमकल्याणरूप श्राप्तमीमांसा ग्रन्थको अपनी अष्टसहस्री टीका के द्वारा सुशोभित किया है-उन महान् आत्मा स्वामी विद्यानन्दको नमस्कार है। जो प्रमाणों, प्राप्तों तथा पत्रोंकी परीक्षाएँ करनेवाले हुए हैं जिन्होंने प्रमाणपरीक्षा, प्राप्तपरीक्षा और पत्रपरीक्षा जैसे महत्वके ग्रन्थ लिखे हैं-उन विद्या तथा अानन्दके महान् उदयको लिये हुए अथवा (प्रकारान्तरसे) 'विद्यानन्द महोदय' ग्रंथके रचयिता स्वामी विद्यानन्दकी हम स्तुति करते हैं--उनकी विद्याका यशोगान करते हैं। ___जिन्होंने 'श्लोकवार्तिकालंकार' नामका ग्रंथ रचा है वे कवियोंके चूडामणि, विबुधजनोंके मुकुटमणि और तार्किकोंमें प्रधान तथा निर्मल गुणोंके श्राश्रयस्थान श्रीविद्यानन्दस्वामी जयवन्त हैं-सदा ही अपने पाठकों. वद्वज्जनोंके हृदयमें अपने अगाध पाण्डित्यका सिक्का जमानेवाले हैं। ऋजुसूत्रं स्फरद्रलं विद्यानन्दस्य विस्मयः । शवतामप्यलंकारं दीप्तिरंगेषु रंगति ॥ -पार्श्वनाथचरिते. वादिराजसरिः श्रीविद्यानन्दाचार्य के जुसूत्ररूप तथा देदीप्यमानरत्नरूप अलंकारको जो सुनते भी हैं उनके भी अंगोंमें दीप्ति दौड़ जाती है, यह आश्चर्यकी बात है ! अर्थात् अलंकारों-श्राभूषणोंको जो मनुष्य धारण करता है उसीके अंगोंमें दीप्ति दौड़ा करती है--सुननेवालोंके अंगोंमें नहीं, परन्तु श्रीविद्यानन्दस्वामीके सत्यसूत्रमय और स्फरद्रत्नरूप प्राप्तमीमांसाऽलंकार (अष्टसहस्री) और श्लोकवार्तिकालंकार (तत्त्वार्थटीका) ऐसे अद्भुत अलंकार हैं कि उनके सुननेसे भी अंगोंमें दीप्ति दौड़ जाती है-सुननेवालोंके अंगोंमें विद्युत्तेजका-सा कुछ ऐसा संचार होने लगता है कि एकदम प्रसन्नता जाग उठती है।

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