Book Title: Alamkaradappana
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 48
________________ मालोवमा जहा : हरि-वच्छं व सुकमलं गअणं व भमंत-सुर-सच्छाअं। साआर-जलं व करि-मअर-सोहिअं तुह घर-द्दारं ॥२०॥ विउण-रूवोवमा जहा : निव्वावारिकअ-भूअण-मंडलो सूर-णासिअ-पहाओ। णाह पओस-व्व तुमं पाउस-सरित्तणं वहसि ॥२१॥ ण हु ऊणा णहु अहिआ जा जाअइ सा हु होइ संपुण्णा। ... जा उण समास-लीणा सा गूढा भण्णए उवमा ॥२२॥ संपुण्णा जहा: सोहसि वअणेण तुमं केअइ-कण्णुल्लिआ-सणाहेण । कमलेण व पास-ट्ठिएण मुद्धड-हंसेण पसअच्छि ॥२३॥ गूढोवमा जहा : कह पाविहिसि किसोअरि दइअंथणअल-सखेअ-नीससिरि। रम्भा-गब्भोअर-णिअम्ब-भार-मसिणेण गमणेण ॥२४॥ उवमा-वएही उत्तिविडि-रइएहि संखला होइ।। उवमिज्जइ उवमेओ जेसि लेसाण सा लेसा ॥२५॥ संखलोवमा जहा : सग्गस्स व कणअ-गिरिकं चण-गिरिणो[व] महिअलं' होउ। महिवीढस्स-वि भर-धरण पच्चलो तह तुमं चेअ ॥२६॥ लेसोवमा जहा : सो संझा-राअ-समो ' जल-पेम्मो जो जणो सुहओ। सो किं भासइ संझा-राण व जो ण रिंछोलि ॥२७॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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