Book Title: Alamkaradappana
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad
View full book text
________________
नत्थि विएहो किरिआ - रसिअस्स होइ जत्थ फल- रिद्धि । भण्णइ विभावणा सो कव्वालंकारइत्तेहिं ॥ ७६ ॥
वड्डइ अ-सित्त-मूलो अपओ होंतो-वि परसइ हम्मि । गओ - विअ कण्हो अधोअ - विमलो जसो तुज्झ ॥७७॥ अण्णो चिअ उत्तरओ अ जत्थ भावइ स भावओ भणिओ ! दुविहो हु होइ जह तह साहिज्जंतं णिसामेह ॥७८॥
कस्स - इ वणआई तर्हि, हु (?) सुएहिं उत्तरेही नज्जंति । अब्भितरम्मि णिअ-हिअअ - गूढ - भावो तहा उत्तो ॥७९॥ जस्स भणिईही अण्णो, अण्णो पअडिज्जए जहिं अत्थों । अण्णावएस - णामो, सिट्टो सत्थआरेहिं ॥८०॥
आउ (?) अलंकारो जहा :
हा हा विहूअ - करअलआ लहिअ अंसुअं डड्डुं ।
पडिअ गोला - ऊरे, णं सरसेण मिसेणं हलिअ - सुहा ॥८१॥
अण्णावएसो जहा :
अण्णअस्स बंध भोइणि णव- वच्चअअ - सेल्लिअं बइलस्स । आलोअ - मेत्ता - सुहवो ण कज्ज-करण - क्खमो एसो ॥८२॥
>
पुव्व- भणिअ- सरिसम्मि वत्थुम्मि ।
तस्स विवरिअ - अत्थ-भणणं सो अण्णो ॥ ८३ ॥
XX XX XX XX
अत्थंतरणासो जहा :
विप्फुरइ रवी उअआअलम्मि गहु अत्थ - महिहर - सिरत्थो । तेअंसिणो वि तेअं, लहंति ढाणं लहेऊण ॥८४॥
Jain Education International
XX XX XX XX
for Personal & Private Use Only
46
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64