Book Title: Alamkaradappana Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 54
________________ 45 जह णिअ (?) भण्णइ बहुआ परिवाड़ी-पअडणं जह-संखं । किं पुण बिउणं तिउणं चउग्गुणं होइ कव्वंमि ॥६७॥ हंस-ससि-कमल-कुवलय-भसल-मुलाणण निज्जिआ लच्छी। तिस्स गइ-मुह-कर अल-लोअण-धम्मेल्ल-बाहाहिं ॥६८॥ तिउणो जहा : जो वहइ विमल-वेल्लहल-कसण-सिअ-सरि आ]-विस-मिअंकं । मुद्धद्ध-रअणिअर-मौलि-संसिअंतं सिवं णवह ॥६९॥ चउग्गुणो जहा : तिए सम-मउअ-दीहेहिं निम्मल-तंब-धवल-सोहेहिं । दसणाहर-नअणेहिं जिआई मणि-जावअ-कमलाइं ॥७०॥ अणवेक्खिअ-पत्त-सहाअ-संपआए-समाहिओ होइ । गुण-किरिआण-विरोहेण एस भणिओ विरोहो-त्ति ॥७१॥ समाहिओ जहा : अच्चंत-कुविअ-पिअअम-पसाअणत्थं पअतमाणिए। उइओ चंडो-वि तत्तो अ पसरिओ मलअ-गंधवहो ॥७२॥ विरोहो जहा : तुज्झ जसो हर-ससहर-समुज्जलो सअल-णवणिअ दिढं-पि। मइलइ णवर वर-वेरी-वीर-वहु-वअण-कमलाई ॥७३॥ उवमाणेण सरूअं भणिऊण भस्सए जहिं भेओ। थुइ करणेणं संदेह-संसिओ सो-हु संदेहो ॥७४॥ संदेहो जहा : किं कमलमिणं नो तं स-केसरं किं ससी ण तत्थ मओ। दिटुं सहि तुज्झ मुहं स-संसअंइ अज्झ तरुणेहिं ॥७५॥ Jain Education Internatio For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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