Book Title: Alamkaradappana Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 58
________________ सहोत्ति-सिलेसो जहा : पीणा घणा अ दूरं समुण्णआ णह-विवत्तिअ-छाआ। मेहा थणआ-वि तुह , निट्ठवंति तण्हाउरो लोओ ॥१०१॥ उवमा-सिलेसो जहा : दूराहिं चिअ णज्जइ ढक्का-सद्दस्स सूइअंगमणं । लहुइअ-महिहर-सत्ताणुमत्त-हत्थिण-व पहूण ॥१०२॥ हेउ-सिलेसो जहा : हेला-विसविअ-मअणग्गणेण सम-पेच्छिआइ अ जणस्स। अलिअ-परम्मुहआए भद्द णअण-पहे तं सि ॥१०३।। अच्चुब्भड-गुण-संथुइ-ववएस-वसेण सविसआ जत्थ। कीरइ निंदाइ थूई , सा ववएस-थुई णामं ॥१०॥ ववएस-थुई जहा : अकुलीणे पअइ-जडे , अकज्ज-वंके जीए ससंकम्मि। तुज्झ जसो णर-सेहर , किज्ज सुअणा विअ णामाइ ॥१०५॥ गुण-ससिसत्तण-तण्हाइ जत्थ हीणस्स गुरुअण समं । होइ समकाल-किरिआ जा सा समजोइआ साहु ॥१०६॥ समयोगिता जहा : मअणस्स परं रज्जं कीरइ रइ-तरल-तरुणि-णिवहस्स। समआल-चलिअ-मणि-वलअ-मेहला-णेउर-रवेण ॥१०७॥ अप्पत्थुअप्पसंगो अहिआर-विमुक्क-वत्थुणो भणणं । अणुमाणं लिंगेणं , लिंगी सहिज्जए जत्थ ॥१०८॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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