Book Title: Alamkaradappana Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 57
________________ 48 रिद्धि-उदात्तो जहा : तुह णर-सेहर विप्फुरिअ-रअण-किरण-णिअर-णासिअ-तमाई। भिच्चाण-वि दीव-सिहा-मइलाइ ण होंति भवणाई ॥९३॥ . महाणुभावत्त-जाइउदत्तो जहा : वेल्लहल-रमणि-थणहर-पडिपेल्लिअ-विअड-वच्छ-पीढा-वि। ण चलंति महा-सत्ता , मऊणस्स सिरे पअंदाउं ॥९४॥ . परिअत्तो जहा : ससिमुहि मुह-पकअ-कंति-प्पसरण-किरणकं(?) विलासेण । दिट्टि दाऊण तओ , गहिअइं जुआण-हिअआई ॥१५॥ दव्व-किरिआ-गुणाणं पहाणआ जेसु कीरइ कईहिं। दव्युउत्तर-किरिउत्तर-गुणुत्तरा ते अलंकारा ॥१६॥ दव्युत्तरो जहा : वर-करि-तुरंग-मंदिर-आणाअर-सेवअ-कणअ-रअणाइ। चिंतिअ-मेत्ताई चिअ , हवंति देवे पसण्णंमि ॥९७॥ किरुयुत्तरो जहा : मा रुअउ मा कीसाउ , मा झिज्जउ मा विहिं उलाहउ। जा णिक्किव तुह बहु-वल्लहस्स वरई पिड पडिआ ॥९८॥ गुणत्तरो जहा : ससि-सोम्म सरल सज्जण , सच्च-वअ सुहअ सुचरिअ सलज्ज । दिट्ठो सि जहिं तुअं तेत्ताइ कहणु ण णरिंदा(?) ॥१९॥ उअमाणं उअमेअं , रइज्जइ तेण सो सिलेसो-त्ति । सो उण सहोत्ति-उअमा-हेऊहिंतो मुणेअव्वो ॥१०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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