Book Title: Alamkaradappana
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

Previous | Next

Page 59
________________ अप्पत्थुअप्पसंगो जहा : सासुक्कोएण गआ उअह वहुआइ सुण्ण-देवउलं । पत्तो दुलह-लंभो-वि अण्ण-कज्जागओ जारो ॥१०९॥ अणुमाणं जहा : णूणं तीअ वि सूअंति तेण सह विलासिअं हआसेण । नह-पअ-पल्लव-लग्गाइ सअणिज्ज-दलाई अंगाइ ॥११०॥ आअरिसंमि-व जासिं उच्छर-रोणणभर(?) फुड-च्छाआ। दीसंति पअव्वा(?) हिअअ-हारिणो सो हु आअरिसो ॥१११॥ आअरिसो जहा : केलि-परा मोसर मण्णे तुह फंसूअवं अपावंत । हत्था से णह-किरण-च्छलेण धाराहि-व रुवंति ॥११२॥ थेवोवमाइ सहिआ , (अ)संत-कारण गुणाणुजोएण। अविवक्खिअ-सामत्था , उप्पेक्खा होइ साइसआ ॥११३।। उम्पेक्खा जहा : दीसइ पूरिअ-संखो-व्व मलअ-मारुअ-णरेंद-संचलणे। दर-दलिअ-मल्लिअ-मउल-लग्ग-मुह-गुंजिरो भमरो ॥११४॥ विविहेहि अलंकारेहि एक्क-मिलिएहि होइ संसिट्ठि। आसीसालंकारं, आसिव्वाअं च भणंति ॥११५॥ संसिट्ठि जहा : तुज्झ मुहं ससि ससिमुहि तह तुझंब-नव-पल्लवा चलणा। थणआ तुह जल-कलस-व्व सुंदरा कं ण मोहंति ॥११६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 57 58 59 60 61 62 63 64