Book Title: Alamkaradappana Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 53
________________ 44 होतक्खेवो जहा : जइ वच्चसि तह वच्चसु गरु(अ-दाह)-विरहग्गि-तविअ-तणुए। वच्चसि तइ समअंचिअ अहवा कह जंपिअं एसा ॥५९॥ अवकंतक्खेवो जहा : खग्ग-प्पहार-दढ-दलिअ-रिउ-दलस्स गअ-कुंभ-वीढस्स। तुह नत्थि-एत्थ को महिहराण संचालणो होज्ज ॥६०॥ होइ-सहाओ जाइ वैरेगो उण विसेस-करणेण। उअणेन-मोही (?) सआ अणेणं च्च् (?) बज्झइ कईहिं ॥६१॥ जाइ जहा : सिर-धरिअ-कलसा घोलिर-बाहा-जुअलाइ गाम-तरुणिए। मण्णइ विलास-दिट्ठो भइ (?)-ट्ठिअअं पामरो पुहवि ॥६२॥ वैरेगो जहा : दूसह-पआव-पसरो सोमो सइ अखलिअ-पहो तं सि । ते व्व जडा उण दोण्हा वि रवि रअ रअ हअ-छाआ ॥६३॥ फुड-सिंगाराइ-रसो सो रसिओ अह भण्णए अलंकारो। अण्ण-ववएस-भणिए विणिम्मिओ होइ पज्जाओ ॥६४॥ रसिओ जहा : दूई-विअड्ड-वअणाणुबंध-इअरा विभिउं थद्धा । पडइ सउण्णस उअरे रसंत-रसना कुरंगच्छी ॥६५॥ पज्जाओ भण्णइ जहा : गरुआण चोरिआए रमंति(ए) पयड-रइ-रसं कत्तो। मा कुणसु तस्स दोसं सुंदरि विसम-ट्ठिए कज्जे ॥६६॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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