Book Title: Alamkaradappana Author(s): H C Bhayani Publisher: L D Indology AhmedabadPage 51
________________ 42 सअलवत्थु रूवअं जहा : गअण-सरं पेच्छह पाउसम्मि तणु-किरण-केसर-सणाहं । तारा-कुसुम-व्ववणं महभरण पउलं समक्कमइ ॥४३॥ एक्केक-देस-रूवअं जहा : अविरअ-पसरिअ-धारा-णिवाअ-निट्ठविअ-पंथिअ-समूहो। मारिहइ मं स-दइअंनिक्किवो पाउस-चिलाओ ॥४४॥ भेआ णाएहिं चिअ हरिअ-च्छाएहिं रूवआण कआ । अत्थे लब्भिज्जइ चिअ सअलेअर-रूअआ-हिंतो ॥४५॥ -x-x--xदीविजंति पआई एक्काए चेअ जत्थ किरिआए। मुह-मज्झंतगआए तं भण्णइ दीवअंतिविहं ॥४६॥ मुह-दीव जहा : भूसिज्जंति गइंदा मएण सुहडा असि-प्पहरेण । ग ? तरएण तुरंगा सोहग्ग-गुणेण महिलाओ ॥४७॥ मज्ज-दीव जहा : सुकविण जसो सूराण धीरिमा इहि नरिंदाण । केण खलिज्जइ पिसुणाण दुम्मइ भीरुआण (?) भअअं ॥४८॥ अंत-दीवअं जहा : सत्थेण बुहा दाणेण पत्थिवा गुरु-तवेण जइ-णिवहा । रण-साहसेण सुहडा महिअले पाअड होंति ॥४९॥ अद्ध-भणिअं निरंभइ जस्सि जुत्तिअ होइ सो रोहो। पअ-वण्ण-भेअ-भिण्णो जाअइ दु-विहो अनुप्पासो ॥५०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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