Book Title: Alamkaradappana
Author(s): H C Bhayani
Publisher: L D Indology Ahmedabad

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Page 46
________________ THE ALAMKĀRA-DAPPAŅA The text in Nagari Script सुंदर-पअअ-विण्णासं विमलालंकार-रेहिअ-सरीरं । सुइ-देविअंच कव्वं च पणविअ पवर-वण्णढणं ॥१॥ सव्वाइं कव्वाइं सव्वाइं जेण होंति भविआई। तमलंकारं भणिमोऽलंकारं कुकवि-कव्वाणं ॥२॥ अच्चंत-सुंदरं पि हु णिरलंकारं जणंमि कीरंतं । कामिणि मुहं व कव्वं होइ पसण्णं पि विच्छाअं ॥३॥ ता जाणिऊण णिउणं लक्खिज्जइ बहु-विहे अलंकारे। जेहिं अलंकारिआई बहु मण्णिजंति कव्वाइं ॥४॥ उवमा-रूवअ-दीवअ-रोहाणुप्पास-अतिसअ-विसेसा। अक्खेव-जाइ-वैरेअ-रसिअ-पज्जाअ-भणिआ ||५|| जहासंख-समाहिअ-विरोह-संसअ-विभावणा-भावा । अत्यंतरणासो अण्ण-परिअरो तह सहोत्तिअ ॥६॥ उज्जा अवन्हव इओ पेम्माइसओ उदात्त परिअत्ता । दव्युत्तर-किरिउत्तर-गुणुत्तरा बहु सिलेसा अ ॥७॥ ववएस-थूई-समजोइआ इअ अपत्थुअपसंसा अ। अनुमाणमाअरिसो उप्पेक्खा तह असंसिट्ठी ॥८॥ आसीसा-उवमारूच जाणह णिअरिणं तह अ। उप्पेक्खावअवो भेअ-वलिअ-जमएइ संजुत्ता ॥९॥ एत्तिय-मित्ता एए कव्वेसु पडिट्ठिआ अलंकारा । अहिआ उवक्कमेणं वीसाओ दोण्णि संखाउ ॥१०॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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