Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 9
________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir o आकाश H ३५॥३६॥३७ भगलेपात् भगसंकोचनम् ३५ जातिफल, ३६ माजुफल, ३७ गोघृत (द्वितीय पुस्तके ६१ अफीम) भगपर लेपन करनेसे भग संकोचन होता है. || गामिनी ४६४७।५७।५८।६८।६९।७८७९ ऋतुस्नानानंतरं सर्वसमभागं चुर्णकृत्वा टंकत्रयं एकवर्णेन गोघृतेन - विद्याकल्प सह स्त्रीणांदीयते संतानप्राप्तिः । २ सुंठ ४६ पारसपीपल ४७ नागकेशर ५७ वधायरो ५८ खांड ६८संदेसरीयपत्र ६९ दारुहलद ७८ कालीतुलसीपत्र ७९ आसगंध ऋतुस्नानकवाद चौथे दिन सबसमभाग चूर्णकरके एक तोला प्रमाण एकरंगकीगायके घृतकेसाथ मिलाकर स्त्रीको देवे पुत्र होवे दिनतीन या सातपर्यन्त एकवखतमें न होवेतो तीनलानतक देवे. ८८।२६।४८ एकवर्णगोदुग्धेन ऋतुस्नानान्तरं स्त्रीणांदीयते पुत्रप्राप्तिः ८८ नीमकुंपल २६ जायफल ४८ तावुल यह तीनों वस्तुको चूर्णकर ऋतुस्नानानन्तर एकरंगकी गायके दुधकेसाथ खिलावे पुत्र होताहै पथ्य दुध, चावल, अग्निकेपास न बैठे, रसोई न करे, लडाइटंटा क्रोधादिकसे उत्तेजित न होवे, शांतवृत्तिसे | रहे, संमिलनकेअनंतर जलदी उठे नहि उसीप्रकारसुतीरहै पुत्रप्राप्तिमें सवत्र यह नियम समझना चाहिये. २६।१८। एक वर्णगोदुग्धेन सह ऋतुस्नानानंतरं स्त्रीणां दीयते पुत्रप्राप्तिः। | २६ जायफल ४८ तांबुल एकरंगकी गायके दुधकेसाथ ऋतुस्लानकेबाद चौथेदिनमें देवे पुत्रप्राप्ति पथ्य आदि पहले जैसा. For Private And Personal Use Only

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