Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 22
________________ Shin Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobalth.org Acharya Sh Kailassagarsun Gyanmandie | आकाश गामिनी विद्याकल्प | १६३, ६५, दुग्धेनसहनाभिलेपात् सुखेन प्रसवो भवति १६३ टिटुंरीमूल ६५ थोहरी दुध, दुधकेसाथ घसकर नाभी और अंगुलीके नखोंपर लगावे सुखसे प्रसव होवे गर्भ फसगया होतो निकल जावे ४, १६८ तैलमध्ये उत्काल्य पश्चात् शरीरमर्दने खजूरिका याति ४ पिपल १६८ सिंदुर तेलमें उकालकर पीछे शरीरमे मर्दन करे खाज आदि चर्मरोग सब जावे १४६, ५, १६२, १६१, १४७ एकीकृत्य नागरवेली मूलोपरि लेपक्रियते यौनोस्थाप्यते शुष्कनारिकेल खडानि भक्ष्यते गर्भो निःसरति पातोवा १४६ वंदाल ५ बच शुद्ध १६२ एलीयोसुको १६१ रायणमीजी १४७ साठीजड सब दवा पीसकर कुलींजनकी लकडीपर लेपकरे फिरयोनीमें रखे उपर सुका खोपरा खावे मृत गर्भ निकले १५८ घर्षियत्वा चक्षुरंजनेन शिर्षिकायाति |१५८ पत्रजवमिंजी घसके आखोंमे लगावे शिर्षिका रोग जावे |९५, ५६, १५९, १५७ तन्दुलसदृशाकारं कृत्वा लिंगमुखे स्थाप्यते स्तंभन भवति ९५ शंखनाभि ५६ चीनीयोकपुर १५९शिलाजीत १५७ व्याधिफलरस चावलजैसा करके लिंगमुखमे रखे स्तंभन For Private And Personal Use Only

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