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Shree Jain Prachin Sahityoddhar Granthavali Serial No. 12
श्रीसिद्धनागर्जुन विरचित * आकाशगामिनी पादलेपविधिकल्प
माप्तिस्थानः-श्रीजैन प्राचीन साहित्योद्धार प्रन्थावलि संचालकः-साराभाई मणिलाल नवाब,
नागजीभूदरनी पोल, अहमदाबाद. विक्रम संवत १९९७ ] मूल्य पांच रूपिया
[वीर संवत २४६७
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५-.-.
५-०-०
३-०.
4 श्री जैन प्राचीम साहित्योद्धार ग्रन्थावलिनां प्रकाशनो
चित्र स.मा.पा. १३ विशायंत्रकल्प अने हेमकल्प यंत्र ४२५ १ श्री जैन चित्रकल्पद्रुम
३२. २५--- १४ आकाशगामिनी पादलेपनविधिकल्प २ महाप्राभाविक नवस्मरण
२५-०-० १५ अनुभवसिद्ध मंत्रवत्रीशी यंत्र १० ३ श्री भैरवपद्मावतीकल्प
७२ १५-०-० १६ मणिकल्प याने रत्नपरीक्षा ४ श्री मंत्राधिराज चिंतामणी
१७ श्री अईचुडामणि ५ श्रीजैन स्तोत्रसंदोह भाग १
१८ उपसर्गहरयंत्र विधि सहित ६ श्रीघंटाकर्ण मणिभद्र-मंत्रतंत्र
१९ जगत्सुंदरीप्रयोगमाला कल्पादि संग्रह
छपाता ग्रंथो ७ भारतिय जैन श्रमण संस्कृति
२० कामविजेता श्रीस्थूलभद्र अने लेखनकला
२१ चित्रकल्पसूत्र ८ जैनचित्रकल्पलता
कालकाचार्य ९ श्रीजिनदर्शनचोवीशी
२३ भ्रमणभगवान महावीर १. अनेकार्थ साहित्यसंग्रह भा. १
२४ भारतनां जैनतीयों अने तेमन २१ १९५१ स्तवनमंजुषा
२-८-०
शिल्पस्थापत्य भा.१ १२ श्रीजैनसज्झायसंग्रह
२५ महर्षि मेतारज प्राप्तिस्थानः-साराभाई मणिलाल नवाब. नागजीभूदरनी पोल, अहमदाबाद. पडवान्स प्रिन्टरी:साकर बजार,-अहमदाबाद.
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२-८-० १६-०-०
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आकाश
गामिनी विद्या कल्प
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श्री नागार्जुनकृत आकाशगामिनी विद्याकल्प
३
४
६
फिटकडी
पिपल
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मिरच
११
१२
१३
१४
मिंढासिंगी पतंजारी श्वेतकनरेमूल सोहगी
सिंघव
१९
२१
२२
१८ मोरशिखा मजीठ
२७
२६ जायफल ३४
मसान राख ३५
समुद्र फेन ३९ अजमोदी सरसमूल
जोडी | श्वेतसरपुंखा | जातिफल
ঊথথথথথমমমথমমথম- থ- যমমমলও
१
श्वेतार्क मुल
पारो
१७
जवक्षार
२५
लाख्यरस
३३
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२
सुंठ १०
থথটফম
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२०
मिश्री
२८
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३६
माजुफल
सहदेवी
२९
कांकसी
३७
गोघृत एलची
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आंमली
३०
आगियो
३८
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७
लज्जालु
१५
८
चोल
१६
धूंआसो उपलोद
२४
२३ कथामुल | गाजर बीज ३१
३२
asa ४०
१
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६२
Sasur-dir.samsyamiyansarsasaramvirishanirmw-swamijijuriwyawwwwg
४५ । ४६ ४७ । ४८ इश्वरलिंगी| सुरमो | कुमारीका |श्वेतद्भजटा | श्वेतगुंजा |पारसपिपल| नागकेशर | तांबूल आकाश
। ५० | ५१ । गामिनी रतांजनी | जीरा बेऊ | उभयलिंगी | सोवनमाखी| वारुनीजड | उंधा होली | चीणीयोकपुर विद्याकल्प।
। ६२ । ६३ । ६४ बधायरो खांड गंधक लोद तरु मातुलिंगबीज मोतीचुरो | वायविडंग
७० । ७१ थोहरि | जलभांगरो अफिम संदेसरायपत्र दारु हलद | वेरजो | हरितकी | अजमो
७७ ७८ कृष्ण| ७९ प्रवालू | सीपजड | संखनाभि | रुद्रवंती | श्वेतमूल | तुलसीपत्र | आसगंध तंदुलनी धूल ८३ । ८४
| ८७ । ८८ काकजंघा। हींग | हरिद्रा रामलखमणा हरनिरमाला गोनित | संखपुष्पी | नीवकंपल
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६५
६८
६९
७४
८१
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११.
990
११६
नागवलिपत्र आछन । कुतरी । सेवाल काली सुपारी काकमल | लवंग | बिलगिर आकाश-1 गामिनी अज्यारस | अपराजिता| केरकुंपल | बालकमुत्र |सरघुराबीज रक्त कणयर वारुणीजड | जेठीमध विद्याकल्प
१०८ कालातिल | मनासिल | हरताल | जातिपत्र | समुद्र फल खेजडीरस अश्वरीगणी कपिकच्छुचीज ११३ । ११४ श्वेत- ११५
११७ । ११८ ।
१२० गोरोचंदन | पारवावीट | केसरी सुवा । ब्राह्मी | गजपीपल | निसोत । श्वेतरोहिणी १२१ । १२४ । १२५
१२८ श्वेतरिंगणी| लसन । सोमलक्षार सतावर | सुकडि | तगर ।
शुक्र १३१ ।१३२ अकोट| १३३ । १३४ | हनमंत मली पद्मकेसर | ऋतुवस्त्र | अर्क कुंभी चिडीरीवीट| पंचमैल | सुलुकी दशमुल stor.samsimaryaan-swwwsssmastrsmawwarviyawvarioswami-simes
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१२७
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आकाश
गामिती विद्याकल्प
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१३७
१३८
१३९
कस्तुरी बरासकपुर चंद्धलीकंद १४५
१४६
१४७
वंदाल
साटीजड
मधु
१४९ उदकंटोला १५७ व्याधि अरडूसो पलासपापडो फलरस
१५५
१५६
१६१
१६३ १६४ १६५ रायणमींजी एलीयो सुको टिंडूरीमूल त्रयगंठीकोडी एकडंडीपतंज १६९
१७१
१७२
१७३
काला धतुरो |
१५३ | १५४ मालवीवरुणीजड वाबची
१६२
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१७७
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१७०
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१७८
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वालो
१७९
झेझरो
१४०
१४१
१४२
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१४८
श्वेतदोव चमक पाषाण असींधजड कणेर कुंपल १५० १५१ शरीरवस्त्र मृतभवरो १५८ १५९ पत्रजवमिंजी सिलाजित १६६
१६७
राजहंसी
वीसनख १७४
कुसंतौ (वो) मृतअलसियो
१८०
१८१
माया
कसेलो
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नींबुरस
१८२
तुरी
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१४४ प्रियंगु
१५२ श्वेत
रिंगणी मूल
१६०
गिलोय
१६८
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१७५ | १७६ काली
महदीफल | तुलसी रस
१८३
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anwarmarwariyarnmarwarwanamw-mmmwwmarwariyarwariwww-namnawwg
| १८५ । १८६ । १८७ । १८८ । १८९ । १९० । १९१ । मेथीचिणा प्र.विजिया प्र. कुतक फल
| तमालपत्र| हिंगल वंग | जावित्री आकाश-1
१९८ १९९ । गामिनी है | अकलकरो| एरंडमल | वच्छनाग| मोचरस | धावड्या | बलबीज काकडासीगी कायफल विद्याकल्प
२०४ भाडंगी । | रोहिणछाल| खयरसार | लोहचूर | कुलंजन | पुष्करमूल पाठ
२१५ । | आंवला | जावंत्री | पवाड्या |कवावचिनी वाकिवाई| हाटकीधूली २१७ । २१८ । २१९ २२०
२२१
२२२ । २२३ । २२४ कुकडाकेसर मिनकीकाकेस चोखा | भांगवीज | श्वेतवुईजड| कालिवुई | टंकण खार | नीलोथुथो
२२० । २२६ । २२७ २२८ । २२९ । २३० । २३१ | २३२ चावल | जलोकामृत तुंबागिर | कलायरो | अजमोद उभी रिंगणीगुह्यऊ देवदारु श्वेत धमासो धोवनकापानी -Ramriwww.rwariwarwwwwwwwsanis-now-www.www.www.www.es
२१२
२१४
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१।२।२३। एकवर्ण गोदुग्धेनसह स्त्रीणां दीयते संतानो भवति. १ श्वेतार्कमूल २ सुंठ २।३ कथारिमूल ये तीन चिजें एकरंगके गायके दुधसाथ स्त्रीको देनेसे संतान होतीहै.
३४॥४५ सुनक्षत्रेआनीयपार्श्वेधारणीयं धारबंधः आकाश- ३४ श्वेतसरपुंखा ४५ श्वेतगुंजा ये दो वस्तु अच्छे नक्षत्र में पुष्पार्कमें निमंत्रणपुर्वक लेवे अपने पास रखेतो गामिनी
तलवारकी, छुरीकी, कटारीकी धार बंद होती है.. विद्याकल्प
१२।५६।६७ थुत्कृतसार्धेन लिंगलेपात वीर्यस्तंभः १२ श्वेत कनेरमूल ५६ चीणीयोकपुर ६७ अफीम थुककेसाथ घसकर लिंगपर लेपन करनेसे वीर्यका स्तंभन होता है.
सुपारीकी जगा छोडकर लगावे. IS/२४।६।१३।१५ समभागंकृत्वागदं ( गदयुतं ) दीयते सर्पविषो याति
२ सुंठ ४ पिंपल ६ मिरच १३ सोहगी १५ धुआसो सवसमान भाग करके सर्प काटेको देवे विष नाश होवे अथवा दशमद्वारमें देवेतोभी नाश होवे.
१४।२४।२५ समभागंकृत्वा हिंग्वायाप्रति ( ऋतुकाले) स्त्रीणांदीयते ऋतुनाशः ३ फिटकडी १४ सिंधव २४ गाजरबीज २५ लाखकारस चारो वस्तुको ऋतुकालमे स्त्रीको दीजावे (पिलावे) तो पुष्पनाश होवे.
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आकाश
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३५॥३६॥३७ भगलेपात् भगसंकोचनम् ३५ जातिफल, ३६ माजुफल, ३७ गोघृत (द्वितीय पुस्तके ६१ अफीम) भगपर लेपन करनेसे भग संकोचन होता है. || गामिनी ४६४७।५७।५८।६८।६९।७८७९ ऋतुस्नानानंतरं सर्वसमभागं चुर्णकृत्वा टंकत्रयं एकवर्णेन गोघृतेन - विद्याकल्प सह स्त्रीणांदीयते संतानप्राप्तिः । २ सुंठ ४६ पारसपीपल ४७ नागकेशर ५७ वधायरो ५८ खांड ६८संदेसरीयपत्र ६९ दारुहलद ७८ कालीतुलसीपत्र ७९ आसगंध ऋतुस्नानकवाद चौथे दिन सबसमभाग चूर्णकरके एक तोला प्रमाण एकरंगकीगायके घृतकेसाथ मिलाकर स्त्रीको देवे पुत्र होवे दिनतीन या सातपर्यन्त एकवखतमें न होवेतो तीनलानतक देवे. ८८।२६।४८ एकवर्णगोदुग्धेन ऋतुस्नानान्तरं स्त्रीणांदीयते पुत्रप्राप्तिः ८८ नीमकुंपल २६ जायफल ४८ तावुल यह तीनों वस्तुको चूर्णकर ऋतुस्नानानन्तर एकरंगकी गायके दुधकेसाथ खिलावे पुत्र होताहै पथ्य दुध, चावल, अग्निकेपास न बैठे, रसोई न करे, लडाइटंटा क्रोधादिकसे उत्तेजित न होवे, शांतवृत्तिसे | रहे, संमिलनकेअनंतर जलदी उठे नहि उसीप्रकारसुतीरहै पुत्रप्राप्तिमें सवत्र यह नियम समझना चाहिये.
२६।१८। एक वर्णगोदुग्धेन सह ऋतुस्नानानंतरं स्त्रीणां दीयते पुत्रप्राप्तिः। | २६ जायफल ४८ तांबुल एकरंगकी गायके दुधकेसाथ ऋतुस्लानकेबाद चौथेदिनमें देवे पुत्रप्राप्ति पथ्य आदि पहले जैसा.
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६९।७०।८७ एकवर्णगोदुग्धेनसह ऋतुस्नानानन्तरं स्त्रीणांदीयते पुत्रप्राप्तिः
आकाश६९, दारुहलद ७०, वेरजो ८७ शंखपुष्पी एकरंगकी गायकेदुधसे ऋतुस्नानकेबाद चौथे दिन स्त्रीको देवे पुत्रप्राप्ति होवे || गामिनी ३५१ अनेन रसेन सिधिर्भवति ।
विद्याकल्प ७ लज्जालु, ३ फिटकडी, ५१ वेउ तीनोके रससे लालपिलेकी सिद्धि होतीहै
५।१६।८१ शुक्रशोणिताभ्यां सह दीयते वशीभवति F५ वच १६ उपलोट ८१ काकजंधा वीर्य, स्वरक्तसे मिलाकर देवे वशी होवे
५।१४।६०७१८२ समभागंकृत्वा नश्यंदेयं सर्पविषोयाति ५ वच १४ सिंधव ६० लोद ७१ हरडा ८२ हींग सबसमभाग मिलाकर नश्य देवे तो सर्पविष जाय २।४।१७।२८।८२८७ समभागंचूर्णीकृत्वा शीतलवारिणासह दीयते अजीर्णश्लेष्मज्वरायांति २मुठं४पिपल१७जवक्षार २८चित्रकारहींग८७शंखपुष्पी सव दवाको एकत्रकर ठंडे पानीसे देवे अजीर्णश्लेष्मज्वर जावे ||श६।१४॥३९।५० समभागंकृत्वा हिंग्वायाः प्रतिवासरशीतलवारिणा दीयते गुल्मसंग्रहणी यातः २ सुठ ४ पीपल ६ मिरच १४ सिंधव ३९ अजमोद ५० जीरा सबसमभाग ठंडेपानीसे देवेतो पेटका दर्द संग्रहणी जावे
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१६
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६१।७२।८३ प्रथम टंक ९ द्वितीयं एकसेरप्रमाणकं तृतीयं चत्वारिंशत् तोलकं सर्वमेकीकृत्य सार्धटंकप्रमाणं | दीयते सर्व प्रमेह याति
| ६१ तरू ७२ अजमो ८३ हलदी पहली दवा तरुतोला ३ अजमो सेर १ तोला ८० तीसरी हलदी अर्धासेर सबमिलाकर अर्धातोलाप्रमाण लेवेतो सर्व प्रकारका प्रमेह जावे.
१८/२९/८७।४०।८।१९ पंचागमलेन सह दीयते वश्यंभवति
१८मयूरशिखा २९ चित्रक८७ शंखपुष्पी ४० शिरसमूल ८ चोल १९ जवक्षार पंचागमलके साथ खानेको देवे तो वशी होता है. | ९३ ९५ उत्काल्य ( क्वाथ्य ) दीयते छर्दिनाशः
९३ काली सोपारी ९५ लवंग दोनोको उकालकर क्वाथ बनाकर देवे उलटी बंद होजावे
१।८६ ९७ चक्षुरंजनं रामा वशीभवति
१ सफेत आकडाका मूल ८६ गोघृत ९७ अजारस चक्षुमें अंजन करे स्त्रीसे नेत्र मिलावे स्त्रीवशीकरन होवे.
| ९|७२/९४/५२/५१ / ८४।६३ एकवर्णगोदुग्धेन सह ऋतुकालानंतरं स्त्रीणांदीयते संतानप्राप्तिः
९ पारा ७२ अजमो ७४ सीपजड ५२ उभयलिंगीं ५१ वेउ ९४ रामलखमणा ६३ मोतीचूरो एकरंगकी गायके दुधकेसाथ ऋतुस्नानकेबाद देवे संतान होवे. पथ्य पहले जैसा
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आकाश
गामिनी
विद्याकल्प
९
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
४१४७।५२।६३ ( इतिद्वीतीये पुस्तके ६२) गोदुग्धेनसह नालपरावर्तः ४१ इश्वरलिंगी ४७ नागकेशर ५२ उभयलिंगी ६३ मोतीचूरो (इतिद्वितीये पुस्तके ६२ मातुलिंगवीज) गायकेदुधकेसाथ लेवे नालपरावर्त (जिसके लकडीही लडकी होवे यह दवा ६०६२।६३। या ७१।७२।७३ में दिनमे लेवे तो पुत्र होता है) ८५।८९।९४ उदरे दीयते तृतीयज्वरनाशः ८५ हरनिरमाला ८९ नागरवेलीपत्र ९४ काकविष्टा तीनोवस्तु एकत्रकर पेटभेखिलावे एकान्तराज्वरजाय |९१ नश्यं देयं अर्धस्फेटकंयाति ९१ कूतरीकानश्यदेवे आधाशीशी जाय १६।९० ललाटे लेपात् अर्धस्फेटकं याति १६ उपलोट ९० आछन दोनों वस्तु पिसकर ललाटमें लेप करे तो आधाशीशी जाय. १।१६।८३ आत्मरक्तेन सह यस्य नानं भूये पत्रे लिख्यते सर्ववश्यंभवति १ श्वेतार्क मूल १६ उपलोट, ८३ हलदी अपने रक्तके साथ भूर्य पत्र में जिसका नाम लिखता है वह वशी होता है (द्वितीये १८, ७, अंक स्थाने १८७ वर्तते)
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६
| आकाश
गामिनी विद्याकल्प
|१५।१६।२।४।६।२०।३१।४२।५३६४।१८।७ समभागं अजादुग्धनसह गुटीकांकृत्वा नेत्राञ्जनं कार्य तिमिरं पडवालं नीलबिन्दु, खर्जकादिप्रमुखारोगाः प्रणश्यन्ति १५ धूआसो १६ उपलोट २ सुंठ४पिपल ६ मिरच २० मिसरी ३१ समुद्रफेन ४२ सुरमा ५३ सोवनमाखी ६४ वायविडंग १८ मयूरशिखा ७ लज्जालु (१८,७ के स्थानपर १८७ है उसका अर्थ कतक फल है) इनसब दवाको बकरीके
| दुधके साथ गोलीकरके आंखमे अंजन करे तो तिमिर पडवाल खाज आदि सब चक्षुके रोग नष्ट होजाते है. २७॥८९२, ९६, चूर्णीकृत्य दीयते रक्तपित्तो याति
||९९ सेवाल ९६ वीलगिर इसका चूर्ण कर देवे रक्तपित्त जावे २८||९, ५२, गुडेनसह दीयते वध्यायाः पुत्रोभवति
पारा ५२ उभयलिंगी गुडकेसाथ देवे वंध्याभी पुत्रवती होती है २९/ १, १२, ११, ४, मधुनासह तिलकं दुष्टमुखवंधोभवति
१ श्वेतार्क मूल १२ श्वेतकनेरमूल ११ पतंजारी ४ पिपल सबसमभाग मधुकेसाथ तिलक करे शत्रुका मुखवंद होवे राजदरबारमें जय होवे.
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
२०, ४७, ८६, टंकत्रयप्रमाणं प्रत्येकं, नवटंक (तोला १) प्रमाणं प्रतिदिनं देयं हर्षायांति २० मिसरी विकानेरी ४७ नागकेशर ८६ मख्खनताजा उसी वखतका यह तीनो चीज एक एक तोला एकत्र करके प्रतिदिन एक तोला लेवेतो मूलव्याधि (मसा हर्षा ) जावे. |१, ८४, १००, १२१, एकवर्ण गोदुग्धेनसह ऋतुस्नानानन्तरं स्त्रीणांदीयते पुत्रप्राप्तिः निश्चयेन १ श्वेतार्कमूल ८४ राम लखमना १०० बालक मूल १२१ श्वेतरोंगणी एकरंगकी गायके दुधके साथ ऋतुस्लानके
चोथे दिन स्त्रीको देवे पुत्र होवे. FBI १९, ३६ नश्यंदेयं शिरोवेगस्य नाशः
१९ मजीठ ३६ माजुफल दोनोको पीसकर नाकमें नश्य देवे शिरका वेग जाय. || १४, ५, ८२, ९०, एकवर्ण गोदुग्धेनसह स्त्रीणां दीयते ऋतुस्नानंतरं पुत्रप्राप्तिः
१४ सिंधालुण ५ वच ८२ हींग ९० आछन एकरंगकी गायके दुधके साथ देवे ऋतुस्नानकबाद पुत्रप्राप्ति होवे । 130६६, १०५, उत्काल्प स्त्रीणां दीपते ऋतुनाशः ।
६६ जलभागरा १०५ कालातिल दोनो दवाको उकालकर पिलावे पुष्प नाश होता है.
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५, ६४, उत्काल्य दयिते स्तनवृद्धिः
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५ वच ६४. वायविडंग उकालकर क्वाथ बनाकर पिलावे स्तनवधे
१०५, १६, ३२, गुडेनसह दीयते स्तनवृद्धिः
१०५, कालानील १६ उपलोट ३२ वडवडवाइ तीनों को गुडमें मिलाकर गोली खावे स्तनवृद्धिः
१०, ६६, ४३, तिलके वश्यं
| १० मींडासिंगी ६६ जलभांगरो ४३ कुमारिका तीनोके पीसकर तिलक करे वश्य होवे
१८, १९, ३३, ५०, भगलेपात् संकोचनं पतिवश्यंच
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१८ मयुरसिखा ११ पतंजारी ३३ हाथाजोडी ५० जीरो चारों चीजको पीसकर भग लेपकरनेसे भगसंकोचन पतिवश्य
२१, ५, ५१, २२, ४४, मदनध्वजलेपात् वृद्धिः
| २१ सहदेवी ५ वच ५१ बेउ २२ आवला ४४ श्वेतरुद्रजटा इन सवदवाको पीसकर मदनध्वजपर सुपारी छोडकर लेप करेतो वृद्धि होता है
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
१८, ४३, ४४, १, २१, मदनधजलेपात् रामावश्य २८ मयुरशिखा ४३ कुमारिका ४४ श्वेतरुद्रजटा १ श्वेतार्कमूल २१ सहदेवी इनसबको पीसकर लिंग लेप करे स्त्रीवश्यं १२५, १२६, १६, १४४, १४५, १४७, समभागंकृत्वा भोजनमध्ये दीयते सर्वजनवश्य १२५ सुकडी १२६ तगर १६ उपलोट १४४ प्रियंगु १४५ कालाधतुरा १४७ साटीजड सबवस्तु पीसकर भोजनमें देवे वशीकरण होय. ||६५, दंष्ट्रामध्ये स्थाप्यते दंतपीडा याति |६५ थोहरि दाडमेरखे दांतकी पीडा जाय ३७, १४८, १५६ मदनमंदिरे स्थाप्यं पुष्पो याति ३७ गोघृत १४८ मधु १५६ पलाशपापडो तीनों चीज मदनमंदिरमें रखे पुष्प नष्ट होताहै १५५, घृष्टा नाभौ लेपः सुखेनप्रसूते १५५ अरडुसो पीसकर नाभिमें लेप करे सुखसे बच्चा पैदा होता है १२७ आदित्यवारे गृहित्वा पतिपदं संमद्यते पतिवश्यं १२७ कुठ रविवारको लेकर विधिपूर्वक पतिकेपगमे मसले पति वश होता है
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|३, ७, १८०, १८१, १८२, १८४, अजादुग्धेन पाय्यते भगसंकोचनम् ३ फटकडी ७ लज्जालु १८० माया १८१ कसेलो १८२ तुरी १८४ नाही बकरीके दुधकेसाथ पीवेतो भग संकोच होता है. १०४ पिवेत् छोडःपतति । १०४ जेठीमदका उकाला करके पीवेतो छोडपडे ४६, १०५ उत्काल्य पीयते पुष्पनाशः ४६ पारस पीपल १०५ कालातिल उकालकर पीवे पुष्पनाश होवे ५० स्तनवृद्धिः
५० जीरा उकालकर पिवे स्तनवृद्धि होवे Ma४, ६, ९०, १०६ लेपात् शूलं याति
४ पिपल ६ मिरच ९० आछन १०६ शुद्ध मनशिल पीसकर लेपकरे शूल जाय १०५, १०६, ३२, गुडेनसह दीयते स्तनवृद्धिः . १०५ कालातिल १०६ शुद्ध मनशिल गुंजा एक ३२ वडवाई गुडकेसाथ देवे स्तनवृद्धि होवे |८८, ९९, ११० उष्णीकृत्य कर्णेक्षिपेत कर्णस्थाः कीटकाः निर्गच्छन्ति ८८ नीमकुंपल ९९ कैरकुंपल ११० खेजडी तीनोको गरमकर कानमे गिरावे कीडे निकल जाते है
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
१०७,१०८,११९, ७१, ४, ११८, १४, २०, ११७ तिलतलेन सह उत्काल्य कर्णे मुच्यते बधिरत्वमुपगच्छति १०७ हरताल शुद्ध १०८ जातिपत्र ११९ निशोत ७१ हरीतकी ४ पिपल ११८ गजपिपल १४ सिंधव २० मिसरी |विकानेरी ११७ ब्राह्मी तिलके तेलसे उकालकर कानमे गिरावे बधिरत्व नाश होवे १०९ तक्रेणसह घर्षियित्वा कर्णे क्षिप्यते कर्णपीडा याति १०९ समुद्रफल तक्रके (छाछ-ताक) साथ घषकर कानमें गिरावे कानपीडा जाय ५५, ६६, ७६ हस्ते लिप्यते वशीकरणं ५५ उंधाहोली ६६ जालभांगरो७६ रुद्रवन्ती पीसकर हाथमें लेप करे जिसको हाथ लगावे या दिखावे वही वश होवे ५४, १८, ११, ३३ लेपतो वशीकरणं भवति ५४ इन्द्रवारुणीमूल १८ मयूरशिखा ११ पतंजारी ३३ हाथाजोडी मदनध्वजमे लेप करे तो वशीकरण होवे ४३, ७, ११, ३३ अनेनअग्निस्तंभः ४३ घृतकुमारी ७ लज्जालु ११ पतंजारी ३६ हाताजोडी इसे पीस हाथमे लेप करे अग्निको दिखावे अग्निस्तंभ होवे १, ५५, ७६ एतेषां गुटिकांकृत्वा मुखेधार्यते युद्धे जयः १ श्वेतार्कमूल ५५ उंधाहोली ७६ रुद्रवन्ती सबकी गोलीकर मुखमें रखे युद्ध में जय होताहै
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
|२१, ५५, ४४, २२ कामलता लेपात् वृद्धिः २१ सहदेवी ५५ उंधाहोली ४४ श्वेतरुद्रजटा २२ आंवला पीसकर कामलतामें लेपकरे तो वृद्धि होतीहै |१८, ४३, ४४, २१ कामलता लेपात् स्त्रीवश्य १८ मयूरशिखा ४३ कुमारीका ४४ श्वेतरुद्रजटा २१ सहदेवीचारोंको पीसकर कामलतामें लेप करे तो वनिता वश्य होवे १८, ११, १६, ३३ स्त्री गर्भ विभर्ति |१८ मयुरशिखा ११ पतंजारी १६ उपलोट ३३ हाथाजोडी स्त्रीको ऋतुस्नानानन्तर देवे गर्भ धारन करतीहै |३३, १८, ४४, १ वंध्यापुत्रं लभते ३३ हाथाजोडी १८ मयूरशिखा ४४ श्वेतरुद्रजटा १ श्वेतार्कमूल एक गुंजा चारोंको पीसकर स्त्रीऋतुस्ननकेबाद देवे पुत्र होता है वंध्याकोभी ५९ टंकत्रयं तक्रंसेर ... चत्वारिंशत् तोलकं ऋतुस्नानानन्तरं, स्त्रीणांपाय्यते ऋतुनाशः ५९ गंधक तो १ अर्धासेर तक्रसे ऋतुस्लानकेवाद देवे स्त्रीको पुष्पनाश होवे .
८७, ५५, ७, २१, १५२, १४१, १४२, १५३, १६५, ३३, १३५, ८४, १३६, १३४, समभागं चूर्णीकृत्य EI पुष्पकाले भगमध्ये स्थाप्यं पश्चातूनिष्कास्यतच्चूर्ण लपनश्रीमध्ये दीयते पतिवश्यंभवति
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
८७ शखपुष्पी ५५ उंधाहोली ७ लज्जालु २१ सहदेवी १५२ श्वेतरिंगनी १४१ चमकपाषान १४२ असीधजड १५३ वारूणीजड १६५ एकडंडी पतंज ३३ हाथाजोडी १३५ मुलुकी ८४ रामलखमना १३६ दशमूल १३४ पंचमेल (१ नेत्र, श्रोत्र, वीर्य, दंत, जिह्वा सबका मल पंचमलकहा जाता है) सबदवा. समभागचूर्णकरके ऋतुसमयमे भगकेमध्यमे पोटली रखे पीछे निकालकर वहचूर्ण लापसी में पतिको खिलावे दास होवे. ११, १२४, ८, १९, १४१, ११३, १३९, १५२, १६४, १२९, १२५, ७, १४०, ४५, १२७, १२६, १३०, २७, १३४, १२८, १३१, १०५, एतेषांचूर्णयस्य दीयते वश्यंभवति | ११ पतंजारी १२४ सतावार ८ चोल १९ मजीठ १४१ चमकपाषाण ११३ गोरोचंदन १३९ चंद्धलीकंद १५२ श्वेत
गिनी १६४ त्रयगंठीकौडी १२९ हनमंतमली १२५ सुकडि ७ लज्जालु १४० श्वेतदोव ४५ श्वेतगुंजा १२७ कुठ |१२६ तगर १३० पद्मकेशर २७ मसानरक्षा १३४ पंचमैल १२८ शुक्र १३१ ऋतुवस्त्र १०५ कालातिल सबका चूर्णकर जिसको देवे वश होवे
१५१, ११, १६, ५, २७, ४९, ३८, १५०, ९, १२८ रविदिने एकत्री क्रियते योनौ स्थाप्यते पश्चान्निकाष्य IF/तच्चूर्णं मिष्टान्नमध्ये दीयते पतिवश्यं | १५१मृतभमरो ११ पतंजारी १६ उपलोट ५ वच २७ मसानराख ४९ रतांजनी ३८ एलची १५० शरीरवस्त्र ९ पारो १२८ शुक्र रविवारको एकत्रकरके भगमें रखे पीछे निकाल वह चूर्ण मिठाईमें दो गुंजदेवे पतिवश्य होवे
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
PAARAKSHAYAKAIRSANA SAIRS
१२५, १२६, १६, १४४, ४७, १४५ समभागं संचूर्ण्य सुखभक्षिकया सह दीयते वश्यंभवति १२५ सुकडी १२६ तगर १६ उपलोट १४४ प्रियंगु ४७ नागकेशर १४५ कालोधतूरो समभाग चूर्णकरके मिठाईसाथ देवे पतिवश्य होवे ११४, १३३ विटंकप्रमाणं २३२ षष्टिकुरधोतवारिणा सह पाप्यते सप्तदिनं यावत् गर्भस्थिरीकरणं तथानालपरावर्तोभवति ११४ श्वेतपारेवावींठ १३३ चिडीरीवीठ दोटंक प्रमाण ॥ ॥ भर साठी चावलकेधोवनसे दिन सात लेवे गर्भस्थिर होताहै तथा नालपरावर्त होवे नंबर २१ नालपरावर्त देखो १२३,१३,१४,१०६,१०७,१४५,१३२, १४३ संचूर्ण्य तैलेन सह उत्काल्य कंठमालाया लेपः कंठमालायाति | १२३ सोमलक्षार १३ सुहागा १४ सिंधव १०६ मनसिल १०७ हरताल १४५ कालाधतुरो १३२ अफोटअर्ककुंभी
१४३ कणेरकुंपल पिसकर तैलकेसाथ उकालकर कंठमालामें लेपकरे कंठमाला जावे परंतु सब शुद्ध लेना. j१३८, १३७, ११५, ५५, २१, १६७, १४७ गुटिकां कृत्वा तिलकेन वश्यं. १३८ वरासकपुर १३७ कस्तुरी ११५ केशर ५५ उंधाहोली २१ सहदेवी १६७ राजहंसी १४७ साठीजड सबको एकत्र पिसके तिलक करे वशीकरण होवे
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| आकाश
गामिनी विद्याकल्प
| १६३, ६५, दुग्धेनसहनाभिलेपात् सुखेन प्रसवो भवति १६३ टिटुंरीमूल ६५ थोहरी दुध, दुधकेसाथ घसकर नाभी और अंगुलीके नखोंपर लगावे सुखसे प्रसव होवे गर्भ फसगया होतो निकल जावे ४, १६८ तैलमध्ये उत्काल्य पश्चात् शरीरमर्दने खजूरिका याति ४ पिपल १६८ सिंदुर तेलमें उकालकर पीछे शरीरमे मर्दन करे खाज आदि चर्मरोग सब जावे १४६, ५, १६२, १६१, १४७ एकीकृत्य नागरवेली मूलोपरि लेपक्रियते यौनोस्थाप्यते शुष्कनारिकेल खडानि भक्ष्यते गर्भो निःसरति पातोवा १४६ वंदाल ५ बच शुद्ध १६२ एलीयोसुको १६१ रायणमीजी १४७ साठीजड सब दवा पीसकर कुलींजनकी लकडीपर लेपकरे फिरयोनीमें रखे उपर सुका खोपरा खावे मृत गर्भ निकले १५८ घर्षियत्वा चक्षुरंजनेन शिर्षिकायाति |१५८ पत्रजवमिंजी घसके आखोंमे लगावे शिर्षिका रोग जावे |९५, ५६, १५९, १५७ तन्दुलसदृशाकारं कृत्वा लिंगमुखे स्थाप्यते स्तंभन भवति ९५ शंखनाभि ५६ चीनीयोकपुर १५९शिलाजीत १५७ व्याधिफलरस चावलजैसा करके लिंगमुखमे रखे स्तंभन
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| १५६, ३७, १४८ भगमध्ये मुच्यते पुष्पं आयाति
१५६, पलाशपापडो ३७ गोघृत १४८ मधु [ शहद ] सबको पीसकर गोली बनावे भगमें रखे ऋतु आवे १४७, १५२, ८४, ९, ५२ एकीकृत्य भुमौमध्ये नवदिनप्रमाणं स्थाप्यं पश्चात् गात्रमर्दने कंडूः याति १४७ साठीजड १५२ श्वेतरींगनी ८४ रामलखमना ९ पारा ५२ उभयलिंगी सब दवाको मिलाकर नवदिनतक जमीनमे गाड देवे पीछे शरीर में मले खाज जावे
५४, १२२, १६९, १७१ शिशुमुत्रेन घृष्ट्वा पाय्यते ससणिका याति
५४ इन्द्रवारुणीजड १२२ लसन १६९ एलीयो १७१ वालो बच्चेके पिसाब में घसकर देवे ससनिका जावे १७३, १७४, ६, ७८, १९६ एकीकृत्य चनकं प्रमाणं गुटीं कृत्वाप्रत्रवनेन समं नेत्रांजने विषं हन्ति घृष्ट्वा १७३ मृतअलसियो १७४ निंबुरस ६ मिरच ७८ कृष्णतुलसीपत्र १७६ कालीतुलसीरस एकत्र करके गोलीबनावे चनाजितनी मुत्रकेसाथ घसकर नेत्रांजन करे विष उतरे
| १२७ कार्पासवेष्टितं कृत्वा कृष्णभृंगराजरसस्य सप्तभावना दीयते अर्कवासरे रात्रौ कपिलागोघृतेन सह दीपं कृत्वा कज्जलं पात्यते पश्चात् घृतेनसह संमर्थ नेत्रांजने पतिवश्यं
| १२७ कुठरुई में लपेटकर कृष्णभृंगराजके रसकी ७ भावना देवे रविवार रात्रिको कपिलागायके घृतसे दीवाकर काजल पाडे घीसे मिलाकर आंखमे आंजे पतिदास होवे
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आकाश| गामिनी
विद्याकल्प
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
२४, ६, १०५, २०२ एकत्रीकृत्य सेरमानं जले उत्काल्य पादैकमुत्तार्य स्त्रीणां पाय्यते कषायादिभोजनं वयं सप्तटंकप्रमाणं प्रतिदिनं देयं सप्तदिनं गतपुष्पमायाति २४ गाजरवीज ६ मिरच काली १०५ कालातिल २०२ सढी सेर पानीमे उकालकर क्वाथबनाकर पाव पानी रहे| उतारकर वनिताको पिलावे खट्टाकषायादि भोजन न करे २।। दवा उकाले रोज लेवे सात दिनमे गतपुष्प पीछा आवे १५४, ६, १९०, २२८, १९८, १३ समभागं एकीकृत्य पश्चात्तावन्मात्रं गुग्गुलं मेलयित्वा लघुवदरिकाफल प्रमाणं गुटिकां कृत्वा उष्णोदकेन सह भक्षने अलर्क कुक्कुरस्य शृगालस्यवा विषयाति १५४ मालबीवावची ६ मिरच १९० हिगलुशुद्ध २२८ अजमोद १७८ नेपालाशुद्ध १३ सोहागा समभाग सब | एकत्र करके उतनाहि गुग्गुल मिलाकर छोटी बोरकेसमान गोलीकरे गरम पानीसे गोली लेवे पागल कुत्ता सियालाक विष जावे || १७७, १८, १७९, ३४, १७०, ८४, १२१ एतेषांमूलानि पुष्पार्के निमंत्रणं पूर्वकं गृहित्वाहस्ते शिरसिवा
धार्यते लाभोभवति १७७ अंकोल १८ मयूरशिखा १७९ झेझरो ३४ श्वेतसरपुंखा १७० गली ८४ रामलखमना १२१ श्वेतगिरणी सबको पुष्पार्कके पहलेदिन निमंत्रण देकर पुष्पार्कमे लेवे हाथ माथेमें धारण करे लाभ होताहै
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१८०, १८१, १८२, १८४, ७३ सममात्रा मुर्टिकां कृत्वा अजादुग्धेन सह पाय्यते भगसंकोचनं
आकाश१८० माया १८१ कसेलो १८२ तुरी १८४ नाही १३ प्रवाल सबकी गोलीकरके बकरीके दुधकेसाथ देवेगामिनी भगसंकोचन होवे
विद्याकल्प १८३, १८५, १८६ पोट्टलीका पुष्पदर्शनदिने योनौ स्थाप्यं द्वितीयदीने द्वितीयां तृतीयदीने तृतीयां पश्चात् । त्याज्यं ८७ शंखपुष्पी अजमंकसत्व पंचांग टंक पंच एकवर्ण गोदुग्धेन सह पाय्यते सप्तदिने भोगः संतानप्राप्तिः ९८३ चिना १८५ मेथी चिनाप्र. १८६ विजया पोटलीकरके पुष्प (ऋतु) आवे उसदिन १ पोटली भगमें रखे दुसरे दिन दुसरी पोटली तिसरेदिन तीसरी पीछे चौथे दिन शंखपुष्पी अजमंक सत्वपंचांग टा. ५ एकरंगकी गायके
दुधकेसाथ पीवे सात दिनमें भोग करे संतानप्राति IF१८८, १८९, १९०, १९२, १९३, ४७, ३८, ४, ३५, ११५ समभागंचत्वारिंशत्तोलकं शितोपला| Ma(विकानेरीमिश्री) मध्ये संमिल्य सार्घटकप्रमाणस्य गुटिका कार्या संध्यायां भक्ष्यते उपरिदुग्धपेयं
यावत्सेरप्रमाणं महाबलवान् भवति १८८ तज १८९ तमालपत्र १९० हिंगलु शुद्ध १९२ जावित्री १९३ अकलकरा४७ मागकेशर ३८ इलायची ४ पिपल |३५ जातिफल ११५ केशर सब दवा एक एक तोला विकानेरकी मिसरी तो. ४० मिलाकर .. तोलाका खोराक सांझको लेकर उपर सेर १ दुध मिसरीमिलाकर पिवे महा बलवान होवे
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६, १५५,२००, २०१, २०२, २०३, २०४, २०५, २०६, २०७, २०८, २०९ एतेषां गुडेनसह गुटीकां | कृत्वा भक्षते श्वासकासरुधिरविकारदुर्वलता याति
| २ सुंठ १५५ अरडुसा २०० कायफल २०१ भाडंगी २०२ सढी २०३ रोहिणीछाल• २०४ खैरसार २०५ लोहपुर २०६ कुलिंजन २०७ पुष्करमूल २०८ पाठ २०९ सरसु सब दवाको गुडकेसाथ गोली बनाकर खावे श्वासकांस रुधिर विकार कमजोरी सब जावे
| २३०, २३१, ४९ उष्णोदकेनसह घृष्ट्वा शिशोश्च दीयते घूर्माया
२३०, गुह्येोदेवदारु २३१ धमासो ४९ रतांजनी (लालचंदन) गरम पानीसे घसकर बालकको देवे घूर्माजावे | २२२ अयमेको २१ गोदुग्धेनसह पाप्यते स्त्रीणां नालपरावर्तो भवति
२२२ कालीवुइ २१ सहदेवी गायकेदुधकेसाथ पिलावे स्त्री नालपरावर्त २१ नम्बरका लेख नाल परावर्त देखो | २२९ गुडेनसह गुटीकां कृत्वा पुष्पसमये दीयते पुष्पवृद्धिः
२२९ उभीरांगणी गुडकेसाथ गोली करके ऋतुसमयमें देवे पुष्पवृद्धिः
२२५, ३, ९, ५९, २२७ टंकत्रयप्रमाणं सर्वोषधं भृंगराजरस टंक ९ नवप्रमाणं तैलं पंचदश टंकप्रमाणं सर्वानेकी कृत्य गात्रे मर्यते भोजने गोधूमधुलिका गोदुग्धेनसह भुज्यते उपदेशो याति
| २२५ जलोकामृत ३ फिटकडी ९ पारो ५९ गंधक २२७ कलायरो सब दवा दा. ३ तोला १ भागरारस टा. ९
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प्रमत्र मात्र
आकाशुगार्मिनी विद्याकल्प
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SHAHRK
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तोला ३ तेल तो. ५ सबको मिलाकर शररिमें मसले पथ्य में गहुंकी धुली गायका दुध खावे दिन ७|१४|२१ एसे करे तो गर्मी जावे
१९०, १९५, १९३, १९६, ६७, १९७, १९५, १९९, ३५ आम्रत्वगरसभावना एकं जम्बुत्वकूरसभावना | एकं न्यग्रोधजटारसेन गुटिकां कृत्वा अजातक्रेन गुटिका दीयते वाहिवाडोयाति
१९० हिंगल शुद्ध १९५ शुद्धवच्छनाग १९३ अकलकरो १९६ मोचरस ६७ अफीम १९७ धावडीफुल १९८ बलबीज १९९ काकडासिंगी ३५ जातिफल आम्रत्वक्के रसकी भावना एक, जम्बुत्वक्केसरकी भावना एक वडजटाके रससे गोली बांधे बकरीके छाछसे लेवे वाहीवाडा जावे
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| २१०, २११, २१२, २१३, २१४, २१५, २६, ५९, १५४, १०७, ११, तकवारिमध्यें चतुः प्रहरं पाच्यते | प्रभाते शुष्कवृतांकेनसह सघृष्य परिमर्दिते दद्रौ सर्वे चर्म रोगायाति
२१० बेहडा २११ आंवला, २१२ जावित्री २१३ पवाड्या २१४ कवाबचिनी २१५ कुवाकी काई २१६ हाटकी धूली ५९ गंधक १५४ मालवीवावची १०७ हरताल ११ पतंजारी छाछकी आछमें प्रहरचार पकावे सबेरे सुकावेगन | से दादमें खाजकर दवा मसले दद्रु आदि सब प्रकार चर्म रोग जावे
| २२१, २२२ गोदुग्धेन क्षीरान्नं कृत्वा पुष्प समये दिन त्रयं यावत् दीयते गर्भपातस्य रक्षा अपत्यानि जीवन्ति | २२१ स्वेतवुई जड २२२ काली दुई गायके दुधमें क्षीर जैसा पकाकर ऋतु समये दिन तीन देवे जिसका गर्भ गिर जाता हो उसकी गर्भ की रक्षा होती है
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おすす
आकाशगामिनी विद्याकल्प
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२२४ नीलायुधा शुद्ध भस्म साठी चावल धोनके साथ गुजा देवे शीतल भोजन खावे रक्तप्रवाह जावे | २२३, षष्टिकुर धौतवारिणा सह संघृष्य पाय्यते षन्मासं मृतवत्सायाः अपत्यानि जीवन्ति प्रसुते सति | तत्कालं गुटिकां घृष्ट्रा बालानां देयाः शिशवो जीवन्ति
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६१, १९४ गोघृतेनसह ऋतुस्नातानंतरं स्त्रीणां पाय्यते पुत्र प्राप्तिः
६१ तरु १९४ एरंडमूल गायके घृत के साथ पिलावे ऋतुस्नात के बाद संतान प्राप्ति २१४, अजा दुग्धेन मधुना संमील्य पाय्यते गर्भो भवति
२१४, कवावचिनी बकरीके दुधसे शहत मिलाकर ऋतुस्नात के बाद पिलावे पुत्र होता है नियम सर्व पहिले जैसा २२४, षष्टकुर धौत वारिणा सह घृष्वापाय्यते भोजनं शीतंदीयते रक्तप्रवाहात
| २२३ टंकनस्वार साठी चावल धौतवारिसे घसकर ६ महिनातक पीवे मृतवत्साका अपत्य जीवे जन्मनेपर बालकको | गोली घसकर देवे बच्चा जीता है।
| २१७, २२८, २१९, २२०, २७ ॐ कुकडाकेशर वालविलाइ, हाटकीधुली, मसानकीछाइ, युं लागिहोकाल कलकलवायु कुवाकीकाई नखभरिछांटि तेहकेगात निकलजाइ पिछहीराति इंद पठित्वाअष्टोत्तरशतं १०८ वारं पश्चात् छदयंते यस्यगृहोपरि परस्पर कलहोभवति
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MBERVBHARA
२१७ कुकडाकेशर २२८ अजमोद २१९ चोखा २२० भागवीज २७ मसानराख उपरके मंत्रसे मंत्रकर वार १०८
आकाश| पीछे जिसकेघरपर छांटे परस्पर लडाइ होवे (विडालीवाल हाटकी धूल मसानकीछाई कुवाकी काइ यह सब चीज लेना)
|गामिनी |१०० इदं टंकद्वयं गतनिशिथवारिणा सह दीयते गोधमस्थलिका भोजनदेया निवातस्थाने स्थय |विद्याकल्प अलर्कश्वान शगालानां विषोयाति १०० बालक मुत्र दोटंक ॥ ॥ भर रातका वासीपानीसे मिलाकर देवे उपर पथ्य गहुकी थुली खावे हवारहित | जगापर रखे पागल श्वान शृगालका विष जाय
३३ अनेन मंत्रेन (ॐ किाल किलि स्वाहा) मंत्रयित्वा वाहौ शिरसिवा धारिणीयं वादे विवादे जयः Faजगद्वशीकरणं व्याख्यानादौ आदेयवाक्यं यस्य नाम्ना पूजयित्वा पेटीकायां क्षिप्यते सवशी भवति |३३ हाथों जोडी इस मंत्र मंत्र के हाथ या माथे में धारन करे बाद विवाद में जय होता है और जगद्वश्य होता
१ नोटः-हाथा जोडी नामक एक वृक्ष का फल जो देखनमें साक्षात् हाथ के सदृश अंगुलियोंसे वेष्ठित है पारदर्शक है जिसकी किमत प्रतिहाथ SEआठ आना दो हाथसे दशहाथतकका मिलता है कमसे कम दो हायका आता है ज्यादामें दश हाथ तक जो बडेही परिश्रमसें प्राप्त हुवा है बलिहारी
है प्रकृतीकी कि जो वृक्षोमें ऐसे २ फल लगते है यह वृक्ष कामरूप देशमें होता है एक डब्बी में मंत्रसे मंत्रित करके पूजा करके जिसके नामसे वह रखलो बस वह वश हो जायका दश हाथका बहुत जळदी काम करता है विधी तरकीव साथमें भेजी जाती है मिलनेका पता मैनजर श्रीमहावीर ग्रंथमाला धुलिया जिन्हे आवश्यकता हो निम्न पत्तेसे मंगाळे,
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१०२
है पहले मंत्रको साढावाराहजार जप कर सिद्ध करले ज्यादा जपे तो और भी बहुत अच्छा हो जिस को अपने | #काबु में करना हो उसका ध्यान और नामसे जपे और व्याख्यानादि में पास में रखे व्याख्याता का वचन सब उठाते
आकाशहै हाथा जोडीके प्रभाव से जिसका ध्यान करो एक डब्बी में पूजाकर रखलो वहीं वशमें हो जाता है सिद्ध वस्तु है
गामिनी |१७० गली १७२ कुसतौ ४९ रतांजनी १७५ महदीफल ए चार वाना एकठा करवां पछे कडउ तुंवडो आनीइ विट कापीमुख कांजे कोरि नी खंखेरीइ खंखेरता गीर निकले ते काढीइने खरमुत्र से. १ तोलिने । तुंवडामाही घालीइ पछे ओषध ४ तेमाहि घालीने मुखविडीइ रूडी धेरे राखीइं जिवारि स्त्रीने मास ४ त. ५ त. ६ हुआजांनी ते तुंबडो उपायकरनी जे घरमा स्त्रीना सूआवडि करनार होवइं ते घरमा पेसतां । वारसाख उंवरा हेठ खणी घालीई ते तुंवडो जिम जिम स्त्री उलंडी जाय आवें तिम तिम अधिक गुणथाइ पळे ते स्त्रीने मास पुरा थया जाणीनि अने प्रसव समें सावधान रही प्रसव समें तुंबडं काढीइं उपरि छलो राखिइं ओषड मुत्रने वाय लागबा छोरु जण्या पछी शीघ्र तुंवडु काढीइ मुख उघाडी ओषड घुमडो भरिनि बालकाना मुखमहीनीचोइई बाकी औषध सर्व नाखी दीजे ते छोरु सही जीवे सर्वे औषधमेकीकृत्य ओदनवारिणा संपिष्य पादले यथा सुखं खे विचरति
२८ सब दवाको चावल धोनसे पीसकर पाद लेप करे तो यथेच्छापूर्वक उडकर जाया जाता है.
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हृदयं
| आकाशगामिनी विद्याकल
ॐ
आँ नहीं की
श्री नागार्जुनकृत श्री गोपीचक्र द्वितिय पुस्तके पाठांतर ॐ आँही को भांगरो सहदेवी | मयुराशखा। पतंजारी
शिरः लज्जालु
शिखा । मेंढासिगी हाथाजोडी लक्ष्मणा
कवचं धोलोआकडो| इन्द्रवारिणी| चांडाली गोरंभा
नेत्रं
१४ 23 | विष्णुकांता रुद्रजटा वांझिकंकोडी रुदन्ती
अस्त्रं
आँ
१
हीं को
IGN
____ ॐ हीं चंडे महाचंडे चामुंडे महारक्तं चांमुडे कुरुकुरु मम सर्व सिद्धी कुरुकुरु स्वाहा | अस्य श्री चंडामंत्रस्य चंडेश्वर ऋषिः महा प्रकृतिः छंदः चंडादेवता म्ही वीजं स्वाहा शक्तिः कुरु कुरु कीलकं सर्व सिद्धये जपे विनियोगः
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
अथ ध्यान-ध्यायेच्चंडा घनश्यामां, युवतिं भूरि भूषणाम् । हस्ताभ्यामंकुशं पाशं, दधानां सुस्मिताननाम् ॥१॥
१०,००० जापः त्रिमध्वाक्त श्वेतकरवीरैः १००० होम मूलं षडंगी षोडषौषधं १६ लक्ष्यः इन्द्रादि वज्रादि इत्यावरणार्चनं अगर इस मंत्रका जाप कर साधले उपर प्रमाणसे तो इसके जितने प्रयोग है वह सब कार्य सिद्ध करता है निसंदेह हैं एसा लिखा है
श्रीनागार्जुनकृतगोपीचक्रं कल्पम् अथौषधिकल्प विवरणम् | नृप, भागरो, । सहदेवी सखी, मयरशिखा, जारी, पतंजारी | कलपकलपकी भषजी । लले धार ||
भंडार॥ताभवन कोयंत्रइह । कीयो भीता, लज्जालु, मोहोवड वडपत्रकी पाणी, इन्द्रवारुणी हाथाजोडी
नागार्जुन धार ॥१॥ षोडष भवना
भेषजी । आदिही कलप॥प्रसिद्ध कुपल ६ । ररि, श्वेतार्क चंडाली,कंकाहारी, अजा,मीढासिंगी | रंभा, गिरिरभा,
दोहाका अंक जोडिये । करिलेवो
इन विधि॥२॥नवरत्रय षोडश१६ संखाहोली १५ ।
| गोरोचन १४
चाष्टमी ८ाएओषध घसि सोइ ॥ जटा, रुद्रजटा, छड, नर, अघाधड | कन्यवाझकंकोडी| हस्तु, रुद्रदती
भालतिलक जो कीजीये । देख राजहंसी५ । १०
| दृष्टि वसि होइ ॥३॥
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आकाशगामिनी विद्याकल्प
द्वादश १२ तेरा १३ युगम २ सत ७ । एसभी समकरी पीसि ॥ लेपजोनीपर किजीये । होइ भामनि वसि ॥४॥ रुद्र ११ चतुर्दश १४ एक १ वसु८। सब सम एक पिसाय ॥ भगलेपन वसीभामिनी। इह ही सिद्धि उपाय ॥५॥ |तिथी १५ दस १० वेद ४ अरु वाणही५ । बाटी एकठीसोइ ॥ पानकरत वशीभामनी । सिद्धउपाय इह सोय ॥ ६॥ द्वादश १२ तेरा १३ राम ३ रस ६ । सबसमलेइ पिसाई । लेप अंगपर करतही । जलमखि से न कराई ॥७॥ द्वादश १२ चउदा १४ रुद्र ११ सत ७। सब सम पीस सुजान ॥ पाद लेप जो कीजीये । जलथंभे इक ठान ॥८॥ | आठ ८ दश १० अरु पंचही ५। सब सम जल पीसवाय ॥ ता उपरि लेपन करो । गजदहरो मिटजाई ॥९॥ | जोगेश्वर ९ दश १० वेद ४ तिथी १५ । सव कीजे इकसंग ॥ लेप अंग परि कीजिये । होइ शस्त्रका भंग ॥१०॥ तिथी १५ द्वादश १२ अरु रस ६ शशि १। सब सम पीसो सोई॥पानकरे सो वसि हुवे। इह उपाय सिद्धि होई ॥११॥ वसु ८ षोडस १६ अरु सात ७ जुग२। पिसी लेप करवाय॥ सो नर नाही दाझिसी । अनंग थंभ होइ जाय ॥१२॥ चौदा १४ वाण ५ अरु वेद ४ रुद्र ११ । पीसकर गुटिका कीन ॥ टंक टंक नित भक्षये । क्षुधाअधिक परवीन ॥१३॥
सप्त ७ चतुर्दश १४ वेद ४ नव ९। पीसो समकरि सोय ॥ अंगलेप जो कीजीये । जलथंभन इम होय ॥१४॥ जरामजु ३ षोडस १६ दिग् १० तिथी १५ । एह वसत पिसवाय ॥ लेपन कीजे विधिसुं । पुष्ट लिंग होइ जाय ॥१५॥
तेरा १३ दश १० वय ३ आठही ८। पीसो समकरि सोइ ॥ लिंगलेप मैथुन कसे । तव कामनी वसी होइ ॥१६॥ तेरा १३ इग्यारा ११ आठ ८ द्वय २।ए सब सम पिसवाय ॥ पान करे जब पुरुषही । सुख वनिता अतिपाय ॥१७॥ दश १० नव ९ आठ ८ अरु सातही ७। पीसो समकरि सोइ ॥ लेपन कीजे हाथपर । दुत विद्या जय होइ ॥१८॥
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आकाश| गामिनी विद्याकल्प
दस १० चौदा ले १४ सातही ७ । औषधि सवे पिसाय ॥लिंगलेप जब कीजीये । वंध्या गरभ रहाय ॥१९॥ | चौदा १४ तेरा १३ चार ४ त्रय ३। पीसो चूरण एह ॥ शीतल जल सुपीजीये । सब पित्त दुर करेह ॥२०॥ | आठ ८ चारि ४ नव ९ तेरह १३ । पीस तिलक देभाल ॥ वींदलीकुं जो देखवे । सो मोहे तत्काल ॥२१॥ चार ४ पांच ५ नव ९ तेरह १३ । ए सब वस्त पिसाय ॥ आंखां अंजन कीजीये । चोर प्रगट दरसाय ॥२२॥ पंदरा १५ दश १० छह ६ तीनही ३ । सुखम (सुक्ष्म) सर्व पिसाय॥दोय पाद जल लेपीये। अंगनी थंभ होय जाय ॥२३॥ सोला १६ तेरा १३ तीन ३ द्वय । समकरि पीसो सोय ॥ गुटीका करी मुख राखीये। वीरज (वीर्य) स्थंभन होय ॥२४॥ चौदा १४ इग्यारा ११ चारि ४ सर ५ ए सब समकरि पीस ॥ दोय नयनबीच आंजीये। कर स्तंभ जगीस ॥२५॥ ग्यार ११ दश १० अठ ८ पांचही ५। समकरी सकल मिलाय ॥भाल तिलकवीचि दीजिये । निरखत वशीद्वैजाय ॥२६॥ नव ९ छह ६ बारा १२ सातही ७ । एसवी पीसो एक ॥ धूप इनूकी दीजीये । वसिवंत होय विवेक ॥२७॥ चौदा १४ आठ ८ अरु तीन ३ नव ९।मूलार्क दिन पिसाय॥पानमें धरिकरि चाबीये। निरखत वोल वशी थाय ॥२८॥ तेरा १३ चारि ४ दश १० सात ७ ही। पीस गुटी कराय । मुखमाहीं धरि बोलीये । सोही लेवे वशीथाय ॥२९॥ पनरा १५ बारा १२ पांच ५ दोइ। २ पुष्पार्कमें गुटी करे सोय॥मुख दीजे फुनिभाल बिन्दु । प्रेम नारी वसि होय ॥३०॥ एक १ तीन ३ छह ६ ग्यारह ११ । पीसो सम करिसोय ॥ धुप देई सिरडारीये । सोही उच्चाटन होइ ॥३१॥ ग्यारा ११ सोला १६ पांच ५ दोय २। सम करी सकल पिसाय ॥ हाथलेप जल पीजीये। विषको नाश कराय ॥३२॥ जो जो अंक दोहा कहे । सोही भावना लीन ॥ जो जो घरकी भेषजी। लीजे बुद्धि परवीन
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गोपीचक्रकी भेषजी । हितकरी लिखी रसाल || जीवन लग कहे प्रगट है । गुरुद्रोही विषाल चंद्रावती आदिसरे । लीख्यो जानि शनीवार ।। जयनगर के श्रावगी । अजवराम कहे वाय
॥ श्रीनागार्जुनकृतगोपीचक्रकल्पं सम्पूर्णम् ॥
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॥३४॥ |
॥३५॥
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प्रिय पाठकोंको
खुश खबर -
खास कामरूप देशोत्पन्न वह असली "सियाल सिंगी" जिसकी तारीफ में लोग यह कहा करते हैं कि" सियाल सिंगी श्वेतवाजा, क्या करेगा रूठा राजा " जिसको हमने गहरे श्रमके साथ प्राप्त की है ।
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इसको विधि पूर्वक मंत्रसे मंत्रित करके पास रखनेवालोंकी सर्वेच्छाओंकी सिद्धी होती हैं. तथा — इसके प्रभावसे. राजसभामें सन्मान, मुकदमोंमें विजय प्राप्त, भूत पिशाचादिकों का उत्पात नष्ट ३६० मूठ अपने शरीर| पर नही आता कामरू देशके लोक मंत्रितकर जांघको चीरकरबीच में रखते है और राजयक्षमादि- राजरोग नष्ट हो जाते हैं. शत्रुभी वशमे होकर शरणमें आजाता है. वशीकरण में भी यह सियाल सिंगी अपने ढंगकी एक है. जिन महानुभावोंका आवश्यकता हो निम्न पत्तेसे मंगाले न्योछावर रू. ५ से २५ पर्यंत
आकाश
गामिनी
विद्याकल्प
おおおおお M
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