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आकाश| गामिनी विद्याकल्प
दस १० चौदा ले १४ सातही ७ । औषधि सवे पिसाय ॥लिंगलेप जब कीजीये । वंध्या गरभ रहाय ॥१९॥ | चौदा १४ तेरा १३ चार ४ त्रय ३। पीसो चूरण एह ॥ शीतल जल सुपीजीये । सब पित्त दुर करेह ॥२०॥ | आठ ८ चारि ४ नव ९ तेरह १३ । पीस तिलक देभाल ॥ वींदलीकुं जो देखवे । सो मोहे तत्काल ॥२१॥ चार ४ पांच ५ नव ९ तेरह १३ । ए सब वस्त पिसाय ॥ आंखां अंजन कीजीये । चोर प्रगट दरसाय ॥२२॥ पंदरा १५ दश १० छह ६ तीनही ३ । सुखम (सुक्ष्म) सर्व पिसाय॥दोय पाद जल लेपीये। अंगनी थंभ होय जाय ॥२३॥ सोला १६ तेरा १३ तीन ३ द्वय । समकरि पीसो सोय ॥ गुटीका करी मुख राखीये। वीरज (वीर्य) स्थंभन होय ॥२४॥ चौदा १४ इग्यारा ११ चारि ४ सर ५ ए सब समकरि पीस ॥ दोय नयनबीच आंजीये। कर स्तंभ जगीस ॥२५॥ ग्यार ११ दश १० अठ ८ पांचही ५। समकरी सकल मिलाय ॥भाल तिलकवीचि दीजिये । निरखत वशीद्वैजाय ॥२६॥ नव ९ छह ६ बारा १२ सातही ७ । एसवी पीसो एक ॥ धूप इनूकी दीजीये । वसिवंत होय विवेक ॥२७॥ चौदा १४ आठ ८ अरु तीन ३ नव ९।मूलार्क दिन पिसाय॥पानमें धरिकरि चाबीये। निरखत वोल वशी थाय ॥२८॥ तेरा १३ चारि ४ दश १० सात ७ ही। पीस गुटी कराय । मुखमाहीं धरि बोलीये । सोही लेवे वशीथाय ॥२९॥ पनरा १५ बारा १२ पांच ५ दोइ। २ पुष्पार्कमें गुटी करे सोय॥मुख दीजे फुनिभाल बिन्दु । प्रेम नारी वसि होय ॥३०॥ एक १ तीन ३ छह ६ ग्यारह ११ । पीसो सम करिसोय ॥ धुप देई सिरडारीये । सोही उच्चाटन होइ ॥३१॥ ग्यारा ११ सोला १६ पांच ५ दोय २। सम करी सकल पिसाय ॥ हाथलेप जल पीजीये। विषको नाश कराय ॥३२॥ जो जो अंक दोहा कहे । सोही भावना लीन ॥ जो जो घरकी भेषजी। लीजे बुद्धि परवीन
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