Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali
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२२४ नीलायुधा शुद्ध भस्म साठी चावल धोनके साथ गुजा देवे शीतल भोजन खावे रक्तप्रवाह जावे | २२३, षष्टिकुर धौतवारिणा सह संघृष्य पाय्यते षन्मासं मृतवत्सायाः अपत्यानि जीवन्ति प्रसुते सति | तत्कालं गुटिकां घृष्ट्रा बालानां देयाः शिशवो जीवन्ति
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६१, १९४ गोघृतेनसह ऋतुस्नातानंतरं स्त्रीणां पाय्यते पुत्र प्राप्तिः
६१ तरु १९४ एरंडमूल गायके घृत के साथ पिलावे ऋतुस्नात के बाद संतान प्राप्ति २१४, अजा दुग्धेन मधुना संमील्य पाय्यते गर्भो भवति
२१४, कवावचिनी बकरीके दुधसे शहत मिलाकर ऋतुस्नात के बाद पिलावे पुत्र होता है नियम सर्व पहिले जैसा २२४, षष्टकुर धौत वारिणा सह घृष्वापाय्यते भोजनं शीतंदीयते रक्तप्रवाहात
| २२३ टंकनस्वार साठी चावल धौतवारिसे घसकर ६ महिनातक पीवे मृतवत्साका अपत्य जीवे जन्मनेपर बालकको | गोली घसकर देवे बच्चा जीता है।
| २१७, २२८, २१९, २२०, २७ ॐ कुकडाकेशर वालविलाइ, हाटकीधुली, मसानकीछाइ, युं लागिहोकाल कलकलवायु कुवाकीकाई नखभरिछांटि तेहकेगात निकलजाइ पिछहीराति इंद पठित्वाअष्टोत्तरशतं १०८ वारं पश्चात् छदयंते यस्यगृहोपरि परस्पर कलहोभवति
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आकाशगामिनी
विद्याकल्प
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