Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 29
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir MBERVBHARA २१७ कुकडाकेशर २२८ अजमोद २१९ चोखा २२० भागवीज २७ मसानराख उपरके मंत्रसे मंत्रकर वार १०८ आकाश| पीछे जिसकेघरपर छांटे परस्पर लडाइ होवे (विडालीवाल हाटकी धूल मसानकीछाई कुवाकी काइ यह सब चीज लेना) |गामिनी |१०० इदं टंकद्वयं गतनिशिथवारिणा सह दीयते गोधमस्थलिका भोजनदेया निवातस्थाने स्थय |विद्याकल्प अलर्कश्वान शगालानां विषोयाति १०० बालक मुत्र दोटंक ॥ ॥ भर रातका वासीपानीसे मिलाकर देवे उपर पथ्य गहुकी थुली खावे हवारहित | जगापर रखे पागल श्वान शृगालका विष जाय ३३ अनेन मंत्रेन (ॐ किाल किलि स्वाहा) मंत्रयित्वा वाहौ शिरसिवा धारिणीयं वादे विवादे जयः Faजगद्वशीकरणं व्याख्यानादौ आदेयवाक्यं यस्य नाम्ना पूजयित्वा पेटीकायां क्षिप्यते सवशी भवति |३३ हाथों जोडी इस मंत्र मंत्र के हाथ या माथे में धारन करे बाद विवाद में जय होता है और जगद्वश्य होता १ नोटः-हाथा जोडी नामक एक वृक्ष का फल जो देखनमें साक्षात् हाथ के सदृश अंगुलियोंसे वेष्ठित है पारदर्शक है जिसकी किमत प्रतिहाथ SEआठ आना दो हाथसे दशहाथतकका मिलता है कमसे कम दो हायका आता है ज्यादामें दश हाथ तक जो बडेही परिश्रमसें प्राप्त हुवा है बलिहारी है प्रकृतीकी कि जो वृक्षोमें ऐसे २ फल लगते है यह वृक्ष कामरूप देशमें होता है एक डब्बी में मंत्रसे मंत्रित करके पूजा करके जिसके नामसे वह रखलो बस वह वश हो जायका दश हाथका बहुत जळदी काम करता है विधी तरकीव साथमें भेजी जाती है मिलनेका पता मैनजर श्रीमहावीर ग्रंथमाला धुलिया जिन्हे आवश्यकता हो निम्न पत्तेसे मंगाळे, For Private And Personal use only

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