Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 15
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra ३५ ३६ ३७ ३८ ३९ ******************* ५, ६४, उत्काल्य दयिते स्तनवृद्धिः www.kobatirth.org ५ वच ६४. वायविडंग उकालकर क्वाथ बनाकर पिलावे स्तनवधे १०५, १६, ३२, गुडेनसह दीयते स्तनवृद्धिः १०५, कालानील १६ उपलोट ३२ वडवडवाइ तीनों को गुडमें मिलाकर गोली खावे स्तनवृद्धिः १०, ६६, ४३, तिलके वश्यं | १० मींडासिंगी ६६ जलभांगरो ४३ कुमारिका तीनोके पीसकर तिलक करे वश्य होवे १८, १९, ३३, ५०, भगलेपात् संकोचनं पतिवश्यंच Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir १८ मयुरसिखा ११ पतंजारी ३३ हाथाजोडी ५० जीरो चारों चीजको पीसकर भग लेपकरनेसे भगसंकोचन पतिवश्य २१, ५, ५१, २२, ४४, मदनध्वजलेपात् वृद्धिः | २१ सहदेवी ५ वच ५१ बेउ २२ आवला ४४ श्वेतरुद्रजटा इन सवदवाको पीसकर मदनध्वजपर सुपारी छोडकर लेप करेतो वृद्धि होता है For Private And Personal Use Only **************** आकाशगामिनी विद्याकल्प १३

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