Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 16
________________ San Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir आकाशगामिनी विद्याकल्प १८, ४३, ४४, १, २१, मदनधजलेपात् रामावश्य २८ मयुरशिखा ४३ कुमारिका ४४ श्वेतरुद्रजटा १ श्वेतार्कमूल २१ सहदेवी इनसबको पीसकर लिंग लेप करे स्त्रीवश्यं १२५, १२६, १६, १४४, १४५, १४७, समभागंकृत्वा भोजनमध्ये दीयते सर्वजनवश्य १२५ सुकडी १२६ तगर १६ उपलोट १४४ प्रियंगु १४५ कालाधतुरा १४७ साटीजड सबवस्तु पीसकर भोजनमें देवे वशीकरण होय. ||६५, दंष्ट्रामध्ये स्थाप्यते दंतपीडा याति |६५ थोहरि दाडमेरखे दांतकी पीडा जाय ३७, १४८, १५६ मदनमंदिरे स्थाप्यं पुष्पो याति ३७ गोघृत १४८ मधु १५६ पलाशपापडो तीनों चीज मदनमंदिरमें रखे पुष्प नष्ट होताहै १५५, घृष्टा नाभौ लेपः सुखेनप्रसूते १५५ अरडुसो पीसकर नाभिमें लेप करे सुखसे बच्चा पैदा होता है १२७ आदित्यवारे गृहित्वा पतिपदं संमद्यते पतिवश्यं १२७ कुठ रविवारको लेकर विधिपूर्वक पतिकेपगमे मसले पति वश होता है For Private And Personal use only

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