Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 8
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir १।२।२३। एकवर्ण गोदुग्धेनसह स्त्रीणां दीयते संतानो भवति. १ श्वेतार्कमूल २ सुंठ २।३ कथारिमूल ये तीन चिजें एकरंगके गायके दुधसाथ स्त्रीको देनेसे संतान होतीहै. ३४॥४५ सुनक्षत्रेआनीयपार्श्वेधारणीयं धारबंधः आकाश- ३४ श्वेतसरपुंखा ४५ श्वेतगुंजा ये दो वस्तु अच्छे नक्षत्र में पुष्पार्कमें निमंत्रणपुर्वक लेवे अपने पास रखेतो गामिनी तलवारकी, छुरीकी, कटारीकी धार बंद होती है.. विद्याकल्प १२।५६।६७ थुत्कृतसार्धेन लिंगलेपात वीर्यस्तंभः १२ श्वेत कनेरमूल ५६ चीणीयोकपुर ६७ अफीम थुककेसाथ घसकर लिंगपर लेपन करनेसे वीर्यका स्तंभन होता है. सुपारीकी जगा छोडकर लगावे. IS/२४।६।१३।१५ समभागंकृत्वागदं ( गदयुतं ) दीयते सर्पविषो याति २ सुंठ ४ पिंपल ६ मिरच १३ सोहगी १५ धुआसो सवसमान भाग करके सर्प काटेको देवे विष नाश होवे अथवा दशमद्वारमें देवेतोभी नाश होवे. १४।२४।२५ समभागंकृत्वा हिंग्वायाप्रति ( ऋतुकाले) स्त्रीणांदीयते ऋतुनाशः ३ फिटकडी १४ सिंधव २४ गाजरबीज २५ लाखकारस चारो वस्तुको ऋतुकालमे स्त्रीको दीजावे (पिलावे) तो पुष्पनाश होवे. For Private And Personal Use Only

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