Book Title: Akashgamini Padlepvidhi kalpa
Author(s): Siddh Nagarjun
Publisher: Jain Prachin Sahityoddhar Granthawali

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Page 12
________________ Shn Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shn Kailassagarsan Gyanmandir आकाशगामिनी विद्याकल्प ४१४७।५२।६३ ( इतिद्वीतीये पुस्तके ६२) गोदुग्धेनसह नालपरावर्तः ४१ इश्वरलिंगी ४७ नागकेशर ५२ उभयलिंगी ६३ मोतीचूरो (इतिद्वितीये पुस्तके ६२ मातुलिंगवीज) गायकेदुधकेसाथ लेवे नालपरावर्त (जिसके लकडीही लडकी होवे यह दवा ६०६२।६३। या ७१।७२।७३ में दिनमे लेवे तो पुत्र होता है) ८५।८९।९४ उदरे दीयते तृतीयज्वरनाशः ८५ हरनिरमाला ८९ नागरवेलीपत्र ९४ काकविष्टा तीनोवस्तु एकत्रकर पेटभेखिलावे एकान्तराज्वरजाय |९१ नश्यं देयं अर्धस्फेटकंयाति ९१ कूतरीकानश्यदेवे आधाशीशी जाय १६।९० ललाटे लेपात् अर्धस्फेटकं याति १६ उपलोट ९० आछन दोनों वस्तु पिसकर ललाटमें लेप करे तो आधाशीशी जाय. १।१६।८३ आत्मरक्तेन सह यस्य नानं भूये पत्रे लिख्यते सर्ववश्यंभवति १ श्वेतार्क मूल १६ उपलोट, ८३ हलदी अपने रक्तके साथ भूर्य पत्र में जिसका नाम लिखता है वह वशी होता है (द्वितीये १८, ७, अंक स्थाने १८७ वर्तते) For Private And Personal use only

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