Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 8
________________ पहली बार प्रकाशित हुआ तब मेरा उत्साह द्विगुणित हो गया। मेरे कई मित्रों ने शाकाहार को अपनाया। इस विषय पर मेरा लेखन का क्रम भी चलता रहा। पी-एच.डी. हेतु शोधकार्य के माध्यम से मेरे शोध निदेशक श्रद्धेय गुरुवर आचार्य दयानन्द भार्गव जी के सान्निध्य में मैं जैन विश्व भारती विश्वविद्यालय, लाडनूं (राजस्थान) में कई वर्षों तक रहा। उनके चिन्तन और जीवन का मेरे चिन्तन पर काफी प्रभाव पड़ा। पूज्य आचार्य श्री विद्यानन्द जी एवं पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी के सानिध्य और चिन्तन से तो प्रभावित था ही, जैन विश्व भारती में आचार्य श्री तुलसी जी एवं आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी के व्यापक चिन्तन का भी मुझ पर गहरा प्रभाव पड़ा। डॉ. हुकुमचन्द भारिल्ल जी, प्रो. नथमल टाटिया जी, प्रो. रामजी सिंह जी, प्रो. मुसाफिर सिंह जी प्रो. सागरमल जैन जी, प्रो. कमलचन्द सौगाणी जी, प्रो. राजाराम जैन जी, प्रो. राधावल्लभ त्रिपाठी जी के विचारों से मैं काफी प्रभावित रहा। मंगलायतन विश्वविद्यालय, अलीगढ़ में सभी पाठ्यक्रमों में समान रूप से पढ़ाने हेतु मूल्यपरक शिक्षा के अन्तर्गत इसके नियामक श्री पवन जैन जी ने मुझसे इस विषयक एक विशाल पाठ्यक्रम की रूपरेखा तैयार कराई थी, जिसमें ऐसा विचार बना कि आरम्भ में अहिंसा के विविध पहलुओं को नये परिप्रेक्ष्य में प्रस्तुत किया जाय ताकि नयी पीढ़ी अहिंसा का सार्वभौमिक महत्त्व समझ सके। इस निमित्त मैंने उस समय अहिंसा पर नये तरीके से चिन्तन परक रूप में एक यूनिट लिखा था, किन्तु वह योजना तो अपूर्ण रह गयी; पर अहिंसा पर मेरा अनुसन्धान सतत चलता रहा। विद्यपीठ के पूर्व कुलपति अहिंसा भक्त स्वर्गीय श्रद्धेय आचार्य वाचस्पति उपाध्याय जी की यह प्रेरणा मुझे निरन्तर उत्साहित करती रही कि अहिंसा पर व्यापक चिन्तन-अनुसन्धान करते हुये सरल भाषा में मैं एक ग्रन्थ लिखू । उनके अकस्मात् वियोग होने से यह कृति उनके

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