Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 7
________________ प्राक्कथन सिद्धान्त, चेतना और प्रयोग- इन तीन स्तर पर अहिंसा की अनुभूति आवश्यक है। इतने विशाल शाश्वत मूल्य की प्राचीन विरासत को पाकर भी हम इसके प्रति तमाम भ्रांतियाँ पालकर उसकी उपेक्षा करके स्वयं को, परिवार को, समाज को, राष्ट्र तथा सम्पूर्ण विश्व को अशांत कर लें, तो यह हमारी बहुत बड़ी भूल होगी। अच्छा यही होगा कि हम समय रहते अहिंसा जैसे सर्वकल्याणकारी सुख-शान्ति प्रदायी जीवन मूल्यों को आत्मसात कर लें, ताकि समाज, सम्पूर्ण विश्व सुरक्षित रहे, और उसका भविष्य सुरक्षित रहे। जैन कुल में जन्म लेने से शुद्ध पारम्परिक अहिंसा धर्म के संस्कार विरासत में मुझे मिले ही हैं साथ ही मेरे पूजनीय पिताजी प्रो. डॉ. फूलचन्द जैन प्रेमी (पूर्व अध्यक्ष-जैनदर्शनविभाग, सम्पूर्णानन्द संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी) तथा पूजनीया माँ डॉ. मुन्नीपुष्पा जैन जी का सतत प्रशिक्षण मुझे हिंसा के कुतर्कों का सामना करने तथा निरन्तर अनुसन्धान करते रहने को प्रेरित करता रहा। इस ग्रन्थ में भी उनका विशेष मार्ग दर्शन प्राप्त हुआ है। सर्वविद्या की राजधानी काशी में अध्ययन के दौरान मैंने स्वयं अनुभव किया कि मेरे ऐसे कई मित्र जिनके घरों में कभी प्याज-लहसुन तक निषिद्ध था, वे बाज़ार में खड़े होकर अण्डा और मांसाहार तक अपनाने में संकोच नहीं कर रहे थे। उन्हें शाकाहारी बनाने की मैं पूरी कोशिश करता था। उन दिनों मैंने कई वैज्ञानिक प्रमाण एकत्रित करके 'शाकाहार' के समर्थन में कई लेख भी लिखे। काशी के सुप्रसिद्ध दैनिक अखबार 'गाण्डीव' में 16 अप्रैल 1992 को मेरा एक लेख 'अहिंसक क्रान्ति का सूत्र शाकाहार' जब (ix)

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