Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan Author(s): Anekant Jain Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham View full book textPage 5
________________ जब हम दूसरे प्राणियों को भी अपने ही समान समझेंगे तभी हिंसा से विरत हो पायेंगे क्योंकि दुःख किसी को भी प्रिय नहीं है । कर्मणा मनसा वाचा सर्वभूतेषु सर्वदा । अक्लेशजननं प्रोक्ता अहिंसा परमर्षिभिः ॥ मन, वचन तथा कर्म से सर्वदा किसी भी प्राणी को क्लेश न पहुँचाना ही अहिंसा है। योगदर्शन में इसे ही अनभिद्रोह शब्द से कहा गया है - तत्र अहिंसा सर्वदा सर्वभूतेषु अनभिद्रोहः । (पातञ्जल योगसूत्र भाष्य 2.30) बौद्ध साहित्य सुत्तनिपात में लिख है - पाणे न हाने न च घातयेय, न चानुमन्या हनतं परेसं। सव्वेषु भूतेषु निधाय दण्डं, ये धावरा ये च तसन्ति लोके। भारत में उत्पन्न ऐसी एक भी दार्शनिक परम्परा नहीं है, जिसने अहिंसा को अपना विषय न बनाया हो । बाहर की संस्कृतियाँ भी जब भारत के संपर्क में आयीं, तब यहाँ की संस्कृति से प्रभावित हुये बिना न रह सकीं। डॉ. अनेकान्त कुमार जैन को हार्दिक बधाई देता हूँ, जिन्होंने अपने इस ग्रन्थ 'अहिंसा दर्शन : एक अनुचिन्तन' में इस बात पर भी गहराई से विचार किया है । संस्कृत तथा प्राकृत साहित्य में प्रतिपादित अहिंसा दर्शन की समीक्षा लेखक ने व्यावहारिक धरातल के निकष पर की है तथा जिसकी प्रासंगिकता को प्राञ्जल शैली में स्थापित करने का सफल प्रयास किया है । यह अनुचिन्तन इसलिए भी प्रशंसनीय है कि आज की भागदौड़ में सहजता और सरलता के मार्ग का आश्रय करके ही प्राच्य विद्या के ग्रन्थों में निहित ज्ञान राशि से ही जिज्ञासु समाज को लाभान्वित किया जा सकता है । रमेश कुमार पाण्डेय ( vi)Page Navigation
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