Book Title: Ahimsa Darshan Ek Anuchintan
Author(s): Anekant Jain
Publisher: Lal Bahaddur Shastri Rashtriya Sanskrit Vidyapitham

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Page 3
________________ पुरोवाक् भारतीय संस्कृति अहिंसा प्रधान संस्कृति है । सभी धर्मों ने अहिंसा के गीत गाये हैं । इसे प्रथम धर्म माना है तथा इसकी उपलब्धि होने पर ही सत्य का भी पालन होता है - अहिंसा प्रथमो धर्मः सर्वेषामिति सन्मतिः। ऋषिभिर्बहुधा गीतं सूनृतं तदनन्तरम् ॥ (कुरलकाव्य 23/3) जैनधर्म के चौबीस तीर्थंकरों की सुदीर्घ परम्परा ने अहिंसा धर्म की आराधना पर विशेष बल दिया, यही कारण है कि अहिंसा की सूक्ष्म व्याख्या तथा जीवन में उसके प्रयोग इस परम्परा में आज तक सुरक्षित मुझे प्रसन्नता है कि विद्यापीठ के जैनदर्शन विभाग के विद्वान् मनीषी डॉ. अनेकान्त कुमार जैन ने इस पुस्तक में अहिंसा जैसे शाश्वत मानवीय मूल्य को विभिन्न धर्म-दर्शनों के परिप्रेक्ष्य में देखते हुये उसके प्रयोगों की प्रासंगिकता पर सरल भाषा में गहराई से विचार किया है। इस सम्बन्ध में अनेक अनुद्घाटित पक्षों को सामने लाने के लिए लेखक बधाई के पात्र हैं। मुझे विश्वास है कि इस ग्रन्थ के माध्यम से जिज्ञासुओं एवं गवेषकों को विचार-विमर्श हेतु चिन्तन के नये बिन्दु प्राप्त होंगे। ग्रन्थ के उत्तम प्रकाशन हेतु मैं विद्यापीठ के शोध एवं प्रकाशन विभाग को भी धन्यवाद देती हूँ। प्रो. उषारानी कपूर कुलपति (प्रभारी)

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