Book Title: Agamanusar Muhpatti Ka Nirnay
Author(s): Manisagar
Publisher: Kota Jain Shwetambar Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 2
________________ क इस सूचना को पहिले पढिये. या cooooयहसमय शांतिपूर्वक सबसे मिलकर रहनेका है, बहुत लोग खंडन मंडनके विवादकी पुस्तकें छपवाना नहीं चाहते, तोभी स्थानकवासियों की तरफ से मुख वस्त्रिका निर्णय, गुरु गुणमहीमा, जैनतत्त्वप्रकाश, वगैरह ८-१० पुस्तकोंकी अनुमान ३००००-४०००० हजार प्रतिये छपकर प्रकाशित होचुकी है उन्होंमें भगवती, ज्ञाताजी, निरयावली, निशीथ, महानिशीथ आदि आगमीकि नामसे तथा आचार दिनकर, योगशास्त्र, ओघ नियुक्ति आदि प्राचीन शास्त्रोंके नामसे और शिवपुराण आदि अन्यशास्त्रों के नामसे प्रत्यक्ष झूठ बोलकर व्यर्थ भोलेजीवोंको धोखे में डालनेके लिये हमेशा मुंहपत्ति बांधी रखनेका ठहरायाहै और हाथमें मुंहपत्ति रखकर मुंह की यत्ना करके बोलने वाले सर्व जैनियों के उपर बहुत अनुचित आक्षेप किये व झगडा फैलाया, यह सब बातें सर्वथा जिनाज्ञा विरुद्ध होनेसे भव्यजीवोंको सत्य बातका निर्णय होने के लिये मेरेको स्थानक वासियों की मुंहपत्ति बांधने संबंधी सब पुस्तकों का और सब शंकाओंका समाधान अच्छी २ युक्तियों पूर्वक सर्व शास्त्र पाठों के साथ इस ग्रंथमें लिंखना पडाहै । स्थानक वासी, बाईस टोले, हूंढिये व साधु मार्गी इन चार नामोंमें ढूंढिया नाम विशेष करके सर्वत्र प्रसिद्ध है तथा "ढूंढत ढूंढत ढूंढिलिया सब, वेद पुराण कुरानमें जोई । ज्यों दही मांहीसु मक्खण दंढत, त्यो हम ढूंढियों का मत होई॥१॥” इस प्रकार यह लोग ढूंढिया नाम स्वीकार करते हैं इसलिये मैंने इस ग्रंथमें ढूंढिया नाम लिखा है इसपर कोई नाराज न होवे। प्रेसवालोंकी कई तरहकी तखलीफोंसे यह ग्रंथ बहुत विलंबसे प्रकट हुआ है और छपाई में भी बडी गरबड रहगईहै इसलिये प्रेसदोष, दृष्टिदोष, लेखक दोषकी पाठक गण क्षमा करें । प्रथम जाहिर उद्घोषणा नंबर १-२-३ पढकर फिर मूल ग्रंथ पढें और सत्य तत्वही ग्रहण करें। इसग्रंथको आपपढो, औरोंको पढाओ, मित्रोको व आसपासके गांवोमें भेजो, श्वेतांबर जैनों में घर घरमें प्रचार करो, तभी सत्य असत्यकी सर्वत्र परीक्षा होगी. सर्पकी कांचली की तरह झूठीबातरूप मिथ्यात्वको छोडना और चिंतामणिरत्नकी तरह सत्य बातरूप सम्यक्त्वको ग्रहण करना यही सच्चे जैनीका पहिला कर्तव्यहै। लघुकर्मी मोक्षगामी सत्य बात ग्रहण करतेहैं और गुरुकर्मी संसारगामी सत्य वातपर नाराज होते हैं ।

Loading...

Page Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 ... 92