Book Title: Agam Kaha Koso evam Agam Nama Koso
Author(s): Dipratnasagar, Deepratnasagar
Publisher: Shrut Prakashan Nidhi

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Page 74
________________ ७४ आगम कहा एवं नामकोसो ભરતક્ષેત્રમાં વર્તમાન કાળે મોક્ષે જનાર છેલ્લા સાધ્વી व्यति, तेना पट्टशिष्य आर्य ‘पभव'|| सम. ३११; अंत.२० उता:(तनो नामोपतो मने स्थाने छ|| आव.चू.२-पृ.१८३; तुनो संह महीदी नथी) तेना है- जगाणंद (जगानन्द) मे साधु भगवंत, ने ગુણ વર્ણન કથાદિ સંદર્ભ જ લીધા છે. ||. ने सुज्जसिव तथा सुज्जसिरिने पोतानी आया(मू.१-)वृ. सूय. (मू.२७-)वृ. || शुद्धि ७२वानो मा प्रगट थयो. ठा. (मू.१-) वृ. सम. (मू.३८३-) वृ.|| महानि. १५१६; भग. (मू.५-) नाया. ५,२२०; जनअ (जनक) मिथिलानी २१%, उवा. २; पण्हा -१ ભ૦મહાવીરની સુખશાતા પૂછાવેલ. विवा.१; निरु. ३; आव.नि.५१८; आव.चू.१-पृ ३१६; निसी(भा.२१५४-) वृ.वव.भा.४५२४*७. | जनजस (यज्ञयशस्) सौशयपुरनो मे दस. चू.पृ.६; दस.(मू.१-) वृ. २वासी, तापस जन्नदत्त ना पिता उत्त. (मू.१११२-)वृ. नंदी. २३; । भने नारदना ६६८, पत्नी सोममित्ता हती.. जंबूदाडिअ (जम्बूदाडिम) मे २%, ने ॥ आव.नि.१२९५+वृ. आव.चू.२-पृ.१९४; सने पुत्र युजत 'सिरिया' नामे पत्नी सती. ||१-जन्नदत्त (यज्ञदत्त) सौरीयपुरनो २३वासी लक्खणा नाभे पुत्री ती. अथा सो परिखा जन्नजस नो पुत्र भने नारद नो 'लक्खणज्जा પિતા, તે એકાંતર ઉપવાસ કરતો હતો. जंबूवती (जम्बूवती) हुमो 'जंबवई आव.नि.१२९०; आव.चू.२-पृ १६४; आव.(नि.१३४-) वृ. |२-जन्नदत्त (यज्ञदत्त) औसांबीना सोमदेव भने जक्खदिन्न (यक्षदत्ता) मंत्री सगडाल नी || सोमदत्त न पिता पुत्री थूलभद्द न पडेन ‘संभूइविजय' न|| उत्त.नि.१०८+वृ. શિષ્યા. તેને બીજી છ બહેનો હતી ||जम (यम) तापस जमदग्गि न पिता आव.चू. २-पृ.१८३; | आव.चू.१.पृ.५१९ आव.(नि.९१८-) वृ. जक्खसिरी (यक्षश्री) यंपानगरी ना ग्राम | जमदग्गि (जमदग्नि) राम न पिता मने 'सोमभूइ-१'नी पत्नी, इथा मो. नागसिरी | जमना पुत्रसंघ अधीहता. भृ गन। नाया. १५८; ॥ २॥% जियसत्तु नी पुत्री रेणुगा तेनी पत्नी जक्खसेन (यक्षसेन) महानिसीह सूत्रना। હતી. તેને વરિય એ મારી નાંખેલ द्धिारने मान्य ४२।२ विद्वान मायार्थ || सूय.(मू.४२०-)वृ. जीवा.१०५; महानि.५९९; आवचू.१-पृ.५१९; आव.(नि.९१८-)वृ. जक्खहरिल (यक्षहरिल) यवता बभदत्त ना || जमालि (जमालि) क्षत्रिय आमनो पत्नी (२९) नागदत्ता, जसवई मने || २०४९भार म०महावीरना पडेन सुदंसणानो रयणवई ना पिता પુત્ર તેની પત્ની પિયતં હતી, જે उत्त.नि. ३४०+वृ ભમહાવીરની પુત્રી હતી. ભવંદનથી जक्खा (यक्षा) मंत्री सगडाल नी पुत्री, વૈરાગ્ય જાગ્યો, દીક્ષા લેવા ઈચ્છા थूलमद्द नीडेन, संमूइविजय ना शिष्या.|| २.(हीक्षानी संमति भाटे यो सुं६२ संवाद आव.चू.२-पृ.१८३; છે. તથા દીક્ષાયાત્રાનું અદ્ભુત વર્ણન છે. जक्खिणी (यक्षिणी) म०मरिष्टनेमिना भुज्य मा पाइ नवामतनी स्थापना ४२॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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