Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 299
________________ આગમત सूत्र जरूरी हैं. ५ प्रश्न-श्रावकको स्थावर की हिंसा का पञ्चक्खाण ही नहीं है, तो फिर उसकी विराधना के प्रतिक्रमण के लिये इरियावही क्यों करना ? उत्तर-व्रतका प्रतिक्रमण नहीं है, पापका प्रतिक्रमण है ? "व्रत लेनेवालेको ही पाप लगे और व्रत नहीं लेनेवालेको पाप नहीं लगे ऐसा नहीं है. इसमें व्रतवाला हो या व्रतरहित हो लेकिन प्रतिक्रमण तो सबहो को करना चाहिये, क्योंकि कृत्य नहीं किया १ अकृत्य किया २ श्रद्धा नहीं की ३ विपरीत प्ररुपणा की ४ इन चारों का प्रतिक्रमण है. ६ प्रश्न-पेश्तर सामायिक उचरना कि पेस्तर इरियावहि० पडिक्कमना ? उत्तर-पेश्तर इरियावहि० पडिक्कमना, पीछे सामायिक उचरना, वादि वैताल श्रीशांतिसूरिजी श्रीउत्तराध्ययनवृत्ति में साफ फरमाते हैं कि"सामायिकं च प्रतिपत्तुकामेन तत्मणेतारः स्तोतव्याः, ते च तत्त्वतस्तीर्थकृत एवेति तत्सूत्रमाह-चतुर्विंशतिस्तवेनेत्यादि, (उत्त० पृ० ५८०) सामायिक लेने वाले को चाहिये कि सामायिक को बताने वाले श्रीऋषभादिक २४ जिनेश्वरों की स्तुति के लिये ‘लोगस्स उज्जोअगरे' यह सूत्र कहे, इरियावहिया बिना इधर लोगस्स कहने का संबंध ही नहीं है, इसीलिये पेश्तर इरियावहिया पडिक्कमना, पीछे सामायिक उचरना, बिना इरियावहिया कि ये जो कुछ किया ही जाय तो सब अशुद्ध होती है, ऐसा श्री हरिभद्रसरिजीने दशवैकालिकवृत्ति में कहा है, "ईर्यापथपतिक्रमणकृत्वा न किश्चिदन्यत् कुर्यात् , तदशुद्धतापत्तेः" (दश० प० २८१ )

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