Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 311
________________ ७२ આગમજ્યાત जो लोग सांवत्सरिक की पर्युषणा पेश्तर श्रावणादि में कर लेते हैं वे जिस साल में अधिक मास है उस साल में तो अधिक मासकी गिन्ती करेंगे और फिर दूसरे वर्षकी सांवत्सरी में क्या करेंगे ? क्या मुसलमानों के माफिक एक मास पर्युषणा आगे लायेंगे या जिस साल में अधिकमास नहीं है उस सालमें अपनी कल्पना से अधिक लगा देंगे ? अर्थात् दूसरे साल १३ महीने का सांवत्सरिक प्रतिक्रमण कैसे करेंगे ? ३० प्रश्न - अधिक मास गिन्ती में नहीं गिने तो चउमासी आदि तप कैसे करना ? उत्तर- कार्तिक चौमासी की पूर्णिमा आखिर में आवे इस माफिक चौमासी और भादवा सुदी ४ आखिर में आवे इस माफिक मासखमण आदि करना. जैसे तिथी की वृद्धि होने पर अर्ध मासक्षपण मास क्षपण और वार्षिक तपवाले करते हैं वैसे ही इधर भी समझना. श्रावणादिकी वृद्धि होने पर चौमासी छमासी तप जैसे करेंगे उसी तरह आखिर में कार्तिक मास लेंगे वैसाही इधर आखीर में भादवा लेना. ३१ प्रश्न- प्रतिक्रमण नाम चौथे आवश्यक का है तो फिर छ आवश्यकों को प्रतिक्रमण क्यों कहना ? उत्तर - आवश्यक चूर्णिकारभादि महात्माओ चउमासी पडिकमणे में अमुक प्रमाण काउस्सग्ग, राई में अमुक प्रमाण आदि कहते हैं. इससे छ आवश्यक के नाम भी पडिक्कमण कह सकते है । जैसे पंचवस्तु में भी ' चातुर्मासिके वार्षिके च प्रतिक्रमणे ' ऐसा कहा है. जहां २ चूर्णि आदिमें प्रतिक्रमणकी विधि फरमाई है वहां राई आदि पडिक्कमण की हो विधिका लेख है.

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