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આગમત
उत्तर-महानुभाव ! उस वक्त राजा अकेला प्रतिक्रमण नहीं कर सकात था
क्या ? आचार्यजोको पलटाने की क्या जरुरत थी ? सोचने से मालूम होगा कि सकलसंघ को एकही तरह से करना चाहिये. इससे आचार्य महाराज आदि सकलसंघने संवत्सरी चतुर्थीकी की. इतना ही नहीं, किंतु श्री निशीथचूर्णि - दशाश्रुतस्कंधचूर्णि वगैरह में तो
‘कालिकाचार्यजी ने चतुर्थी के दिन सांवत्सरिक करने का चलाया, इससे हम भी चौथ के दिन संवत्सरी करते हैं', ऐसा साफ चूर्णिकार महाराजने लिखा है.
चूर्णिकार के वख्त में पंचमीको संवत्सरी करने वाले कोई भी नहीं थे, परंतु जो २ पंचमी की संवत्सरीक करते है, वे सब विक्रम
की बारवीं सदी या इसके बाद निकले हैं । २७ प्रश्न-दो श्रावण या दो भादवे होवे तो पर्युषणा व सांवत्सरिक प्रति
क्रमण कब करना ? उत्तर-दो श्रावण होवे तो भादवा शुक्ल चतुर्थी के दिन सांवत्सरिक प्रति
क्रमण होवे वैसे पर्युषण करना. और दो भादवा होवे तो दूसरे भादवा सुदी ४ को सांवत्सरिक आवे एसे पर्युषण करना,
जैसे पाक्षिक में तिथि की वृद्धि होने पर भी चतुर्दशी के दिन ही पाक्षिक प्रतिक्रमण करते हैं, और उस प्रतिक्रमण को पाक्षिक प्रतिक्रमण ही कहते हैं, और चैत्रादि कोई भी आसोज तक का मास बढे तब भी चातुर्मासी आषाढ और कार्तिक मासहीमें करते हैं, और उस प्रतिक्रमण को चौमासी प्रतिक्रमण ही कहते है,
अर्थात् पाक्षिक और चातुर्मासी के हिसाब में जैसा न्यूनाधिक तिथी या मास गिन्ती में नहीं लेते हैं. वैसे ही सांवत्सरिक प्रतिक्रमण के लिये भी न्यूनाधिक तिथि या मास गिन्ती में नहीं लेना.