Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 307
________________ ૬૮ આગમજ્યાત की प्रतिक्रमण विधि में भी योगशास्त्र आदि में यह सूत्र फरमाया है, इससे दोनों को कहना चाहिये. ९८ प्रश्न - श्रुतदेवता, क्षेत्रदेवता आदिका कायोत्सर्ग कहां कहा हैं ? उत्तर - श्रुतदेवतादिके कायोत्सर्ग करने का पूर्वधरोके कालसे ही चलता है, श्रीहरिभद्रसूरीजीने फरमाया है, और आवश्यक चूर्णि आदिमें भी प्रतिक्रमणमें देवताका कायोत्सर्ग करना ऐसा लिखा है. “वित्त देवताए उस्सग्गं करेंति केई पुण चाउम्मासिगे सेज्जदेवयाए वि उस्सग्गं करेंति (आ० वृ० प० ७९४) " आयरणा सुयदेवयमाईण होइ उस्सग्गो ॥ ५९१ ॥ चाउम्मासियवारिसे उत्सग्गो वित्तदेवयाए उ । पक्खियसिज्जसुरीए करेंति चउमासिए वेगे || ५९२ ॥ ( पंचवस्तु ) १९ प्रश्न - श्रुतदेवताकी स्तुति कहां कही है ? उत्तर -खुद गणधरकृत पाक्षिकसूत्र में ही आखिर में 'सुअदेवया भगवई ' यह स्तुति है. यह श्रुतरूप देवता नहीं लेनी, परंतु श्रुत की अधिष्ठायक देवता लेनी, ऐसा साफ २ श्री मलधारी हेमचन्द्रजीने आवश्यक टिप्पण में लिखा हैं, सेनप्रश्न में भी पडिकमणमें श्रुतदेवतादिकी स्तुति कहनी कही है. २० प्रश्न -स्तवन कहे बाद श्रावकों को 'अड्ढाइज्जेसु' सूत्र कहना ! और कहना ऐसा कहां कहा है ? उत्तर- श्रावक के प्रतिक्रमणसूत्र में वह वन्दन सूत्र ( अड्ढाइज्जेसु) नहीं आता है, और साधु प्रतिक्रमणसूत्र में आता है, इससे श्रावको उस सूत्रसे सकल साधुको वंदन करते हैं. २१ प्रश्न - शांतिस्तव हरदम कहना कहां कहा है ? उत्तर- खुद शांतिस्तवमें ही 'यश्चैनं पठति सदा' कहके श्रीमानदेवसूरिजीही नित्य शांतिस्तवका पाठ करना ऐसा फरमाते हैं.

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