Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 306
________________ पुस्तः ४-थु १७ १५ प्रश्न-देव चौथे गुणठाणे है और श्रावक पांचवे गुणठाणे है, तो न्यून को __आगे करना यह बुरा क्यों नहीं माना जाता ? उत्तर-समवसरणमें साध्वीयें जो छटे, सातमें गुणठाणे होती है, वे पीछे बैठती हैं, और देवियां चोथे गुणठाणे वाली होनेपर भी आगे बैठती हैं, श्रावक पांचवें गुणठाणेवाले पीछे बैठते है और चौथे गुणठाणे वाले देवता आगे बैठते है, इतना ही नहीं, बल्कि दर्शनाचार का नियम है कि जो कोई भी गुणवान सम्यग्दृष्टि हो उसके गुणकी स्तुति करना, और यदि गुणवान की तारीफ नहीं करे तो दर्शनाचारकी विराधना होती हैं, सम्यग्दृष्टि देवोंने श्री जिनेश्वर महाराज के समवसरण की रचना, दीक्षा, मोक्ष आदि कल्याणक के महोत्सव करके शासनकी बडी सेवा की है, इससे उनकी तारीफ में कोई हर्ज नहीं है. १६ प्रश्न-क्या देवता बोधि व समाधि दे सकते हैं ? उत्तर-मेतार्य, आरोग्यद्विज, बलभद्रजी, देवादिगणिक्षमाश्रमण, तेतलीअमात्य, उदायन राजा आदिके सूत्र में लिखे हुए बोधिदान के वृत्तान्त को देखने पर भी बिना कदाग्रह यह सवाल कौन कर सकता है ? अर्थात् देवताओंकी सहायता से ही पेश्तर के कई महापुरुष सम्यक्त्वादिको पाये हैं. १७ प्रश्न-'आयरिय उवज्झाए०' यह सूत्र साधुको कहना चाहिये कि सिर्फ श्रावक को कहे ? उत्तर-पंचवस्तु आवश्यकचूर्णि आदि में ___तो आयरियादी पडिक्कमणत्थमेव दंसेमाणा खामेति, उक्तं च " आयरिय उवझाए०" "सव्वस्स समणसंघस्स०" सव्वस्स जीवरासिस्स०" (आ० चू०) साधुप्रतिक्रमण की विधि में ही यह सूत्र कहा है. और श्रावक

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