Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 312
________________ ७ પુસ્તક ૪-થું देखो यदि "पुननिर्व्याघात एव सर्वेषामावश्यकं पतिक्रमणं ततः कुर्वन्ति सर्वेऽपि सहैव " (आ. ७८५) तओ साहू वंदित्ता भणति-पियं च भे बितियखामणासुत्तेणं तच्चेदं इच्छामि खमा० । चउत्थ खामणासुत्तेणं पंचमखामणासुत्तेणं ( ) एसा पडिक्खयपडिक्कमणविही मूलटीकाकारेण भणिया, पच्छा देवसियं पडिकमंति ( ) एवं तु पडिक्कमणकालं तुलंति जहा पडिकमंताणं थुइ अवसाणे चेव पडिलेहणवेला भवइ (आ. ७९२) चत्तारि पडिक्कमणे किइकम्मा (आ. ५४२) ३२ प्रश्न-निसको व्रत न हो या कम ज्यादा हो वो वंदित्तु कैसे कह सकता है ? उत्तर-प्रतिक्रमण शब्द के दो अर्थ हैं-औदयिकभाव से क्षायोपशमिकभाव में आना १ और दूसरा शुभयोग में वर्तना २, इसमें जिसको जो व्रत है और उसका अतिचार लगा है वो तो पीछे क्षायोपशमिक में आता है, और जो व्रत नहीं है उसके लिये व्रत और अतिचार के ख्याल से और पाप की माफी से शुभयोगमें आता है. इसीसे श्रीअभयदेवसूरिजीने पंचाशकजीमें 'अप्रतिपन्नान्तरव्रतस्यापि तदतिचारोच्चारणतोऽश्रद्धानादिविषयस्य प्रतिक्रमणस्यानुमतत्वात् (प. ३४) __ ऐसा कहके नहीं लिये हुए व्रत के वास्ते भी प्रतिक्रमण करने का फरमाया है. ३३ प्रश्न-जिसको सूत्रों का अर्थ मालुम नहीं उसको प्रतिक्रमण क्या फायदा करेगा ? उत्तर-सूत्र के अर्थ के ज्ञान की प्रथम जरूरत है, सूत्र के अर्थ का ज्ञान होने से ही आत्मा को आनंद प्राप्त होता है; और हेयोपादेय का ज्ञान होने से आश्रव को छोडके संवर और निर्जरा की आदर सक्ता है. लेकिन क्षयोपशममंदतादि कारण से अर्थज्ञान नहीं हो

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