Book Title: Agam Jyot 1967 Varsh 02
Author(s): Agmoddharak Jain Granthmala
Publisher: Agmoddharak Jain Granthmala

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Page 298
________________ પુસ્તક -થું ३ प्रश्न-"पंचिदिय०" सूत्र की क्या जरूरत है ? उत्तर-कोइ भी क्रिया गुरुको साक्षी बिना करने की मनाइ है. यदि गुरु महाराज हाजिर न हों तो उन्होंकी स्थापना करनी चाहिये. भाष्यकार इसीलिए फरमाते है कि-"गुरुविरहंमि य ठवणा" अर्थात् गुरु महाराज की अनुपस्थिति में स्थापना करना जो लोग स्थापना नहीं करते वे १ इच्छामि खमासमणो कहते समय क्षमाश्रमण शब्द से किसका संबोधन करते हैं ? २ 'करेमि भंते' में भंते करके किसका संबोधन करते हैं ? ३ वंदन में 'अणुजाणह मे मिउग्गहं' कहकर किसके पास प्रमाणवाला अवग्रह मांगते हैं ? ४ और आखिर में स्थापना नहीं माननेवाले लोग 'अहोकायं कायसंफासं ' (आपके चरणकमलरूप अधःकाय को मेरे मस्तकरूप काया का स्पर्श करने की आज्ञा दें?) ऐसा कैसे कहते है ? फिर स्पर्श करके कहते हैं कि जो आपको इस मेरे सिर स्पर्शन करने में कष्ट हुआ हो तो क्षमा करें, इस जगह पर जो लोग स्थापना नहीं मानते वे वंदन, सामायिक, क्षामणा, कैसे सच्चे करेंगे ? और यह क्रिया यदि साधु साध्वी खुद गुरु होते हुए भी स्थापना नहीं मानेगे तो कैसे करेंगे ? इन सब जगहोंपर गुरुशब्दसे आचार्यही लेने के होनेसे उनकी कल्पना स्थापनामें करनी चाहिये, और इसीलिए आचार्य महाराज के ३६ गुण दिखाने को यह सूत्र है. नोट:-श्री हरिभद्रसूरिजीने संबोधप्रकरण में आचार्य के गुणकी छत्तीसी बताई है। ४ प्रश्व-ईच्छकार का सूत्र क्यों कहना ? उत्तर--श्री कल्पसूत्रजी आदि में 'संमइ-संपुच्छणाबहुलेणं' (बारंबार सुखसाता पूछने वाला होना) इत्यादिक वाक्य है- जिससे यह

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