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वैज्ञानिक, ऐतिहासिक और लोकोपयोगिता की दृष्टि से जैनदर्शन में क्या २ विशेषताएं है ? लोक मानस का निदान करने का उसके पास कौनसा रसायन है ? आदि सभी प्रश्नों के उत्तर हृदयमंथन होने पर टन २ दृष्टियों से जो २ बुद्धिग्रा लगा उसके गाढ़ संस्कारों का चित्र, मानस पट पर अंकित होता गया ।
वैसे तो भगवान महावीर के सभी सूत्रों में अमृत वचन भरे पड़े हैं,. किन्तु उनमें से सबसे पहिले उत्तराध्ययन को बिल्कुल नये ढंग से संस्कारित करने की भावना उद्भव होने के दो कारण थे, ( १ ) सरलता, और ( २ ) सर्वव्यापकता । और इसीलिये सबसे पहिले उसको नवीनता देने की जिज्ञासा सतत वनां रहती थी । उसके साथ ही साथ भिन्न २दृष्टि बिन्दुओं से जैन वाडमय को गुजराती भाषा में विकसित करने के - मनोरथ भी हृदय में उठते रहते थे ।
मानसशाका का नियम है:- 'जापर जाकर सत्य सनेहू सो तेहि मिले, न कछु सन्देहू ।' जिसकी जैसी भावना होती है उसकी पूर्ति के लिये सावन भी वैसे ही मिल जाया करते है । मानों उन हार्दिक आन्दोलनों का ही यह परिणाम था कि कुछ ही समय याद एक तत्वजिज्ञासु भाई भी मिल गये । " महावीर के अमोल सर्वतोत्राही अमृत वचन घर घर में क्यों न पहुँचे ?” – यह हार्दिक प्रेरणा उनके हृदय में द्वन्द मचा रही थी । उन नाई का नाम है श्री० बुबाभाई महासुखभाई । उनकी प्रेरणा से एक दूसरे सेवाभावी-बन्धु मां आ मिले और उनका नाम है श्री० जूठाभाई अमरशीभाई । टन तथा अन्य दूसरे सग्रहस्थों ने मिल कर परस्पर विचार करने के बाद जुडी २ योजनाओं में से एक खास योजना' निश्चित की ।
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दस योजना के फवरूप 'महावीर साहित्य प्रकाशन मंदिर' नाम की संस्थापित हुई । उसके जो २ विद्वान, सभ्य हुए उनने सेवातो सामने करवा के लिये कुल सस्ता साहित्य प्रकाशिव करने का निश्चय किया ।