Book Title: Agam 42 mool 03 Dashvaikalik Sutra
Author(s): Shayyambhavsuri, Bhadrabahuswami, Agstisingh, Punyavijay
Publisher: Prakrit Granth Parishad

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Page 8
________________ प्रकाशकीय स्व. आगमप्रभाकर मुनिराज पू. पुण्यविजयजी म.सा. द्वारा संपादित ‘दसकालियसुत्त'का पुनर्मुद्रण प्रकाशित करते हुए हमें आनंद अनुभव हो रहा है। प्राकृत ग्रन्थ परिषद् द्वारा ई.स. १९७३ में परिष। इस ग्रन्थ का प्रकाशन किया था। पाँच वर्ष से अधिक समय से इस ग्रन्थ की सभी नकलें समाप्त हो गई थी। हम पुनर्मुद्रण करने के लिए आतुर थे किन्तु आवश्यक फंड के अभाव में प्रकाशन कार्य में विलंब हो रहा था। तदनन्तर प.पू.आचार्यश्री ओंकारसूरीश्वरजी के शिष्य पू. आचार्यश्री मुनिचंद्रसूरिजी म. ने ग्रंथ के पुनर्मुद्रण के लिए हमें लिखा और आपने प्रथम आवृत्ति में दिए हुए शुद्धिपत्रक अनुसार एक नकल में स्वयं शुद्धियाँ भी कर ली और अन्य भी अशुद्धियाँ दूर कर के ग्रंथ की वह नकल हमें भेजी। उन्ही की सहाय से एवं सुविशालगच्छाधिपति आचार्यदेवेश श्रीमद् विजयरामचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा. के समुदाय के आचार्यदेव श्रीमद् विजयनरचन्द्रसूरीश्वरजी म.सा.की प्रेरणा से श्रीमती कुमुदबेन हसमुखलाल मोदी (मुंबई) की ओर से ग्रंथ प्रकाशन के लिए हमें रू. ६०,०००/- की सहाय मिली। साथ ही साथ एस. देवराज जैन वाले श्री शान्तिलाल जैन, चेन्नाई के प्रयत्नों से श्री चन्द्रप्रभु जैन नया मन्दिर ट्रस्ट, चेन्नाई की और से रू. ३५,०००/- की सहाय भी हमें प्राप्त हुई। इस तरह इस अमूल्य ग्रंथ के पुनर्मुद्रण के लिए सम्पूर्ण आर्थिक सहाय मिलने से हम यह कार्य संपन्न कर सके। उपरिनिर्दिष्ट प.पू.सूरिवरों एवं दोनो दाता ट्रस्टों के हम आभारी हैं। पुनर्मुद्रणका कार्य सुचारु ढंग से पेश करने के लिए माणिभद्र प्रिन्टर्स के श्री के. भीखालाल भावसार को भी धन्यवाद। - रमणीक शाह प्राकृत ग्रन्थ परिषद् अहमदाबाद ज्ञानपंचमी, ता. २९-१०-२००३ Jain Education Intemational For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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