Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02 Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 3
________________ - चतुर्विधविस्तव ॥ श्रीजिनदासगणिमहत्तरकृताया आवश्यकचूर्णरुत्तरार्धम् ॥मक्षपाद प्रस्तावना निक्षेपादि ॥१॥EL मापीतं सामाइयजायणं,इदाणि चउवीसस्थयावीणि भण्णंति, येन सामायिकव्यवस्थितेन पत्तकालं उरिकतणादीणिवि अवस्स .... ......... | कातव्याणि, सत्य सामाइयाणंतरं चउवीसत्यको मध्यति, अस्य चायमभिसम्बन्धः-पैरेव वत्सामायिकापदिष्ट (रिदमपि) तेषां परया मक्या गुणसंकीर्तन वा द्रष्टव्यमिति, अहवा सापाबाये ठितस्स के पूण्या मान्या, ये ते सामाविकोपदेशार से पूज्या मायाबेतिया समुस्कीर्तना अनेन वा संबंधन परियत्तिक्स्माक्सरः संत्रास, अस्व साकीनाममनस्य पवार्यनुयोगद्वाराणि, जया नगरस्पतंजया उपक्कमो निम्खेवो अ पलोएत नेतब्वं जया पेरिसाए उवलमो छबिहोकिणिक्खेवो तिषिहो वण्येतो, नामाविकको घडीसत्यताति, सुचालावामिणो निक्खेको 'लोउज्जोयकत्ति, तत्थ ताव पढम नामनिष्फण्णो मण्णतिपउवी पर्व च, पउवासंति संखा, तस्य मिलेको नामचउम्बीसा ठवण दवच खेनवः कालप० मावचउध्वीसा, दो मताको रणउम्मीसा सिविहा-सचिता अमान सुम्निमा, अचित्ता करिसावणाणं, मीसिया मियगुडियाणं हत्थीणं, अहवाPage Navigation
1 2 3 4 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 ... 328