Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha
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A
चतुर्विश-131 धम्मो, सो उ पंचविहो-सामाइयचरित्तादि, अहवा खतिमाती दसविहो, एतेष सावगधम्मोऽवि महतो,समातो नाम सामाइयमादी धर्मतीर्थतिस्तव | जाव दुवालसंग गणिपिडग। धम्मो सम्मत्तो।
कराणां चूर्णी
दाणि तित्वं प्राविहितनिवर्चनं, तं च दुविह-दव्वतित्थं भावतित्थं च, दब्वतित्थं मागहमादीय परसमयाचा मिच्छत्तदोसणं व्याख्या ॥८॥
मोक्खमग्गममाइगा, असाहगण य मोक्ख न मग्गति तेहि, एवं कार्याकरणे दष्वतित्थं भवति । सत्य मागहाइयदब्वतित्थे निरुत्तगाथा दाहोवसमं०।११-२५ ॥ १०४७ ॥ भावनित्यपि तेहिं निउत्त-कोम्मि उ निग्गहिते॥ ११-२६ ॥ सिद्धं । अहवा दंसणनाण. ॥११-२८॥१०६०॥ अहवा दब्बतित्थं चउन्बिह-सुओयारं सुउत्सारं ४ भंगा,मावेवि सुओयार सुउत्तारं ४ मंगा, सरक्खा तवभिना बोडिया साधुत्ति जथासंखं ।
इदार्णि करो, मो छबिहो, दो गता, दबकरे गाथा-गोमुहिमुहिपसूर्ण० ॥११-३०॥१०८२-३।। कन्यवि विसए गावीओ करं लग्भति, अवा पडिएण वा अहिएण वा एवं सच्चस्थ विमासा, सीतकरो खेत्तं जं बाविज्जति मांगे वा जो लइज्जति, अण्णत्व उस्सारियं अण्णन्थ जोत्तियाओ जंघाओ, सेसं गाथासिद्ध , एते सत्तरस, अट्ठारसमो उप्पत्तिओ, अप्पणियाए इच्छाए जो उप्पाइज्जति सो उप्पत्तिओ खेत्तकरो, जथा सुकमादि, गामादिसु वा जमि वा खेत्ति करो चणिज्जति । कालकरो| जमि काले करो अहवा कालेण एचिरेणं तुमे दातवंति विभासा । मावकरो पसत्यो अपसत्यो य, अपसत्थो-18 कलहकरो० ॥ १६-१३ ।। १०८५ ॥ सिद्धं । पसत्यो लोगो लोगुत्तरी य, अत्यकरो य. ॥११-३४ ॥ १०८६ । । सिद्ध। इदाणिं जिणेत्ति- जितकोहमाणमाया जितलोभा तेण ते जिणा होति । अरिहा हंता रयं हना अरिहंता
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