Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02 Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha View full book textPage 8
________________ लोकपद व्याख्या RECXXX चतुर्विश- लोको, सो कई लोक्कनि !, उदाहरणं, कोहादीणं उदयेण लोक्कति उदइओ, अणुदरण उपसमिओ, अणुप्पत्तीए खाओ, देसवि- तिस्तुब सुद्धीए खओवसमिओ, परिणवणाए परिणामिओ, संजोगेण संनिवाइओ , एत्थवि कोचि पच्चक्खेण कोवि परोक्खेण । दाणि चूणों ज्जवलोगो परिस्समंता अयः परि अय इति पर्याय:, सो चउन्चिहो- हब्बस्स गुणा खेत्तस्स य गुणा कालस्स अणुभावो ॥६॥ मावस्स परिणामो । दष्वस्म गुणा एत्थ गाथा वण्णरसगंघसंठाण फासठाणगतिवण्णभेदे य । परिणामे य बहुविहे पज्जवलोग समासेण ॥१५-१६॥२०५ मा. पण्णस्स मेदा कालगातीता, रस भेदा ५, गंध २ संठाणे परिमंडलादी पंच, फासे कक्खडादी अह, ठाणं ओगाहणा, एगदेसादिगवा फुसणा, चसदेण जश बण्णमेदा एवं सेसा पदेसभेदा, कालवण्णस्स परिणामो बहुविहो एमगुणकालादी,सव्वस्थ विमासा, जहषा परिणामो बहुविहात्ति सो पेव पसस्थो होऊण अपसत्थपरिणामो भवति । इदाणि खेत्तपन्जवा भरहे पज्जवा जाब एरवए, दीपसागरपण्णत्ती वा, उलोगे तिरिए अहोलोगे, अण्णे मणति-खचपज्जवा अगुरुलवादयः,ते तेन लक्षणेन लोक्यते ।। पदाणिं भवपज्जबलोगो, रहवाणं अच्छिनिमीलणमेसं नस्थि सुहं दुक्खमेव अणुबई । गरए बयाणं अहोनिसिं पच्चमाणाण १॥ असुमा उध्वियणिज्जा सहरसरूवगंधकासा य । नेरए नेरइयाणं दुकवकम्मोवलित्ताणं ॥ २॥ अहका सीतादिवेदणाओ समि मवे अणुभागो, अहसा जे सुहा पोग्गला परिसप्पति तेवि दुक्खचाए परिणमंति, जेण वा न मरति तेन दुखणं, मणुयाम् Mतिरिकाणं च वैमाया, देवाणं नारहितो विपरीता विमासा । ते एवं सोक्कति । इदाणिं मावपरिणामो, सो पसत्थोऽपसत्यो य, पसन्थो गाणादीहि ३, विवरीतो अपमत्यो, अहवा जीवो जेण जेण मारण ॥ ६ ॥Page Navigation
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