Book Title: Agam 40 Mool 01 Aavashyak Sutra Part 02
Author(s): Rushabhdev Keshrimal Jain Shwetambar Sanstha Ratlam
Publisher: Rushabhdev Kesarimal Jain Shwetambar Sanstha

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Page 17
________________ arit गता, विमालो जातुत्ति बाहिरिवाए ठिता, सावओ प नगर परिसिकामो, तो गेहि भवितो-सीतलागं जायरियाणं कहज्जहत्ति बाल चन्दनादि वन्दना दृष्टान्ताः ध्ययन जे तुम्न माइणेज्जा ते आगता, विगालोति न पविट्ठा, तेण कहित, हा इमेसिपि रसिं तुझेननवसागेणं पउण्हवि केवलना | उप्पा, समाते आयरिया दिसाओ पलोएता अच्छति-एनाए मचेग शहिन्ति, सुचपोरिसिपि मणे करेंतित्ति अच्छति, उग्षा &डाए अस्थपोरिसिंति, अनिचिराते संदेडलियं गता, केवीवराणा गाढापति, संडओ डांबतो, पडिक्कतो, आलोइयं, सदिसा ॥१५॥ कतो बंदामि !, नेदि भणितं जनो रोयति, सो चिंतेति-अहो दुडुमेहा णिल्लज्जति, तथावि रोसेणं बंदति, केवली य किर पुचप-17 ४व उवयार न भजति जाव न पडिभिज्जति, एस जीवकपो, तेसु नरिव पुग्वपकतो उपमारोक्ति भणति- अज्जो दबदण-13 एन वंदित, एचाहे मावबंदणएण बंदाहिति, ते य किरतं वदतं कसायडएहिं छड्डाणपडित पट्टतं पेच्छति सेण पडिचोदितो, सो मणसि-एतपि मज्जति !, नहिं माणित- पाढं, कि अतिसयो अस्थि ?, आम, कि छउमस्थिो केवलियो !, मणति- केवलिजो, ताहे सो किर तहेव उसिनरोमकूवो अहो मया मदभग्गेण केवली आसाइतति संवेग गतो तेहिं रडगाणेहि परिनियो Pजाब अपुल्चकरणज्माणं अणुप्पविहो जाव केवलनाणं समुप्पण्ण चउत्थगं बंदतस्स समत्तीए, सम्मेर माया चेहा एममि बंधार | पगमि मोरताय । पुचि दववंदपर्ग जातं ।।। दाणि चितिकम, दबचिती भावचित्ती य, चिंचयने व्यषिती पेढं, अहबा स्यहरणादी बाहिरं लिंग, एस लोउत्तरिया ॥१५॥ लोइया मोडियनिहगारचणियाणं लिंगगहणं | भावचिती णाणदसणचरणाण उवचयो । तत्व उदाहरणं-खाजो । एगो आय-| द रिओ, तेणं कालं करेमाणण लक्षणजुत्तो आयरिओ ठविनो, मो खुाओ, तेसले पक्रया तस्स मरोण व पाणेचर अनीय 56SHIRS

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